Tuesday, May 8, 2012

चालान

चालान
मेरी भतीजी की सगाई के दिन घर से समता कालोनी स्थित शिकारपुरी के बीच हर छोटे-मोटे काम के लिए हमारा बार-बार घर आना-जाना लगा था इसी बीच जो अनुभव हुआ वह ज्यों का त्यों लिख रही हूं.
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ये..ये रूक....
रोक बे पुलिस रोक रही है.
लगा मोटर साइकिल को किनारे... लाइसेंस दिखा...
लाइसेंस तो नहीं रखा...हूं.
पेड़ के पास लगा अपनी मोटरसाइकिल..
सर.. घर से लाइसेंस मंगवा देता हूं.
जब साथ में लाइसेंस लेकर निकले नहीं तो गाड़ी कैसे चला रहे हो.. चालान काटना पड़ेगा...निकाल 500 रूपये.
सर.. रूपये नहीं है, पास में घर है. अभी लाइसेंस लेकर आ रहा हूं.
साले.. बेवकूफ समझ रखा है क्या? भाग जाएगा.
नहीं सर.. मेरा भाई यहीं खड़ा रहेगा. मैं दो मिनट में लाइसेंस लेकर आ रहा हूं.
नहीं बोला ना.. निकाल रूपये..
पर सर.. रूपये नहीं है.
मोबाइल करने देंगे?
हां, मोबाइल कर और रूपये मंगवा. ये ठीक हैं.
मम्मी..प्रगति कालेज के पास एक पुलिस ने रोक लिया है. आप रूपये और लाइसेंस लेकर तुरंत आये.

बुआ से बात कर.
हां.. क्या हुआ?
बुआ.. आप और मम्मी आगे निकल गये हम दोनों को पुलिस ने रोक लिया है. लाइसेंस मांग रहे हैं और 500 रूपये भी.
चल मोबाइल रख. मैं और तेरी मम्मी पलट कर आ रहे हैं.
तुरंत मैं और मेरी भाभी अपनी एक्टिवा में प्रगति कालेज के पास पहुंचे.
पुलिस मेरे दोनों भतीजों को जम कर लताड़ रही थी.
मैंने कहा- क्या बात है किस लिए रोका भाई..
इनके पास लाइसेंस नहीं है. चालान काटना पड़ेगा.
क्या नाम हैं आपका?
मेरे नाम से आपको क्या लेना देना?
मैं जरा एसपी से बात कर लेती हूं.
जिससे बात करनी हो कर लें.
ठीक हैं.
 मैं मोबाइल लगा रही थी उसी वक्त तीन यातायात पुलिस उस पुलिस के पास अपनी मोटरसाइकिल रोक कर खड़े हुए.
मैं मोबाइल में नंबर मिला रही थी कि रूक गई और उस पहले वाले पुलिस से बोली जनाब दो चालान काट दें.
वह गुस्से से मेरी तरफ देखने लगा. उसे यह भी जिज्ञासा बनी कि दो चालान किस लिए?
पूछ ही लिया मैडम दो चालान किस किस नम्बर की गाड़ी का बनाए?
एक तो मेरे भतीजे की मोटरसाइकिल की और एक आपके तीन साथियों की जो एक ही मोटरसाइकिल में तीन सवारी आए. मोटरसाइकिल में तीन सवारी बैठना गैर कानूनी है.
मैडम हमसे ना उलझे, आपके लिए ठीक नहीं होगा.
चलिए फिर एक मेरी एक्टिवा का ही चालान काट दे.
पुलिस ने चालान काटने के लिए मेरी गाड़ी का नम्बर नोट करने जैसे ही नम्बर प्लेट की तरफ देखा.. उसकी  रौबदार आवाज अचानक बदलने लगी. बोला क्या मैडम पहले क्यों नहीं बताया कि आप प्रेस से हैं. चलिए मैडम आपको अनावश्यक परेशानी हुई माफ करें. बच्चों निकलो घर जाओ आगे से लाइसेंस लेकर चलना. जाइए मैडम आप भी निकलिए.
शशि परगनिहा
8 मई 2012, मंगलवार




खेतों में उग आई हरियाली

खेतों में उग आई हरियाली

धरती पर हल चलते ही मिट्टी महकने लगती है,
बीज बोते ही उम्मीदों की बारिश होने लगती है,
घरती मुस्कुराने लगती है, गरजने लगते हैं बादल,
खेतों में उगती हैं हरे रंग की चिट्ठियां,
कठोर हाथों के स्पर्श से चिट्ठियां,
खुल कर बन जाती हैं बालियां,
पुरा परिवार खेतों की खुबसूरती निहारता है,
तो पकने लगती हैं बालियां.
शशि परगनिहा
8 मई 2012, मंगलवार

Wednesday, May 2, 2012

चितचोर


चितचोर
रसोई घर में पटा बिछा कर मेरी सहेली रमा के घर के सभी सदस्यों के साथ मैं भी खाना खाने बैठी.
गर्मी के मौसम में हरी सब्जियों का टोटा, उस पर परोसी गई थाली में तीन-तीन हरी सब्जियां, कढ़ी, सलाद, पापड़, टमाटर-धनिया-मिर्ची की सिलबट्टे से पिसी चटनी.
हैरानी से खामोश देखती रही.
रमा की मां (मैं भी उन्हें मां कहती हूं) ने कहा-घर की सब्जियां है. सुबह परदेसी छोड़ गया है.
गरम-गरम धी पुपड़ी रोटी के साथ जरूरत से ज्यादा खाना खा लेने के बाद मीठे में रबड़ी दी गई, तो मैंने मना कर दिया- पेट में जगह ही नहीं थी.
इच्छा हुई दोपहर में एक गहरी नींद ली जाए, ताकि सुस्ती दूर हो, पर रमा के छोटे भाईयों ने घेर लिया. कहा-ताश हो जाए?
न चाहते हुए भी चींपो गधी के लिए ताश के पत्ते बटने लगे और खेल में ऐसे रम गये कि कब शाम हुई पता ही नहीं चला.
चाय लेकर जब पुरूषोत्तम कमरे में आया, तब घड़ी की तरफ नजर गई.
हमारे खेल को देखते हुए वह भी दो पल के लिए ठिठक गया. लगा वह भी खेलना चाहता है
मैंने उसे अपने पास बुला कर कहा-ये लो मेरी पत्तियां, इन सभी को हराते हुए तुम सबसे पहले खेल खत्म कर लो.
संकोच करता हुआ वह मेरे हाथ से ताश की पत्तियां लेकर उक्ड़ू बैठ खेलने लगा.
तब तक मैं इत्मीनान के साथ चाय की चुस्कियां लेती रही.
इस बार मेरी सहेली रमा हार गई. उसे अब चीपो-चीपो 10 बार बोलना था. वह ना-नुकुर करने लगी.
जोश में आकर पुरूषोत्तम ने कहा-दीदी चोर-चोर तो बहुत चिल्लाती हैं, एक बार चीपो-चीपो बोल दो.
पुरूषोत्तम के ची-पो-ची-पो बोलते ही रमा ने कहा- मेरे बदले पुरूषोत्तम ने कह दिया अब कुछ कहने की जरूरत नहीं है.
हो-हल्ला और चीख-चिल्लाहट के साथ खेल खत्म हो गया.
शाम में आसपास घुमने का कार्यक्रम बना. मैंने कहा- आज बाहर नहीं जाते, मु­ो बगीचा देखने का मन हो रहा है.
उसे क्या देखना. 5 मिनट में एक नजर डाल कर बाहर घूमने निकल जाएगे- रमा बोली.
घर से लग कर बगीचा था. लगभग 5 एकड़ में. सुव्यवस्थित बगीचे में जमीन को विभिन्न खंडों में विभाजित कर उनमें अलग-अलग सब्जियां लगी हुई थी. बगीचे में कुआं था, जिसमें मोटर बिठा दिये जाने और सब्जियों को पानी समय पर मिले उसके लिए नाली बनाई गई थी. कम परेशानी में अच्छी उपज देख मन प्रसन्न हो गया. बगीचे की चारदीवारी से लग कर मौसमी फूल, केले, सुपारी, नारियल, पपीता, आवला, जाम, आम, कटहल के पेड़ भी थे. नारियल के हर पेड़ में आठ से दस नारियल दिख रहे थे.
मैंने कहा-कितना अच्छा है ना. बाहर से फल, सब्जी, फूल खरीदने की जरूरत नहीं. रोज तोड़ो, बनाओ-खाओ.
रमा ने बताया इसे सिर्फ घर के लिए नहीं बोया गया है. रोज सुबह सब्जियां तोड़ी जाती है और टोकरी में पैक कर बाजार भेजी जाती है. इन सभी सब्जियों से मिली राशि का हिसाब परदेसी रखता है. महिने के महिने मैं हिसाब लेती हूं. ये सारा रूपया मेरी जेब खर्च के लिए होता है.
इतने रूपयों का क्या करती हो? ये तो बहुत होते होंगे?
हां, पर मु­ो भी चाहिए अपनी जरूरतों के लिए पैसे, तो मां-बाबूजी से रूपये मांगने के बजाए इसे ही खर्च करती हूं.
हम बगीचे में खड़े हो यह सब बातें कर रहे थे, तभी परदेसी आ गया.
मु­ो नमस्ते कह वहीं खड़ा हो गया.
गर्मी में वहां की शुध्द हवा और हरियाली देक लगा, छुट्टियां बिताने के लिए यह जगह बेहतर है.
रमा ने कहा देख लिया, अब हमारे गांव की भी सैर कर लें. चल मु­ो मंदिर दिखा दें.
 बगीचे से निकल हम दोनों मंदिर चले गये.
 मंदिर में भगवान को नमन करने के बाद वहीं चबूतरे में बैठ गये. कुछ ही समय में रमा की सहेलियां एक के बाद एक आने लगी और ऐसे गप्पे हांकने लगी कि मेरे मुंह सील गये. वे लगातार बड़ी तेज आवाज में छत्तीसगढ़ी में खुल कर बातें कर रही थी. मु­ो यह एहसास हुआ कि मेरे सामने स्वयं को श्रेष्ठ बताने के चक्कर में ज्यादा उत्साहित हो रही हैं. मैं खामोशी से उनकी गुफ्तगू के मजे लेने लगी. जैसे ही घड़ी ने 8 बजाये, सभी अपने-अपने घर जाने के लिए तैयार दिखीं.
काली मिलबो, बोल वे निकल पड़ी और मैं भी रमा के साथ घर की ओर. रमा पूरे रास्ते हर आने-जाने वाले से एक-दो मिनट रूक कर बातें करते हुए चल रही थी, मात्र 2 किलो मीटर का रास्ता हमने एक घंटे में पार किया.
9 बजे घर पहुंचते ही रमा ने पुरूषोत्तम को पुकार कर कहा- खाना बनगे रे?
-हां दीदी.
-काय साग रांधे?
-अण्डा करी बने हे.
-मोर सहेली ये सब नहीं खाय, तोला बताय रेहेव ना?
-वो दीदी बर दुसर साग बने हे.
-चल हमन हाथ-मुंह धो के आवत हन. खाना परोस के रख.
बाथरुम में जाकर हम दोनों फ्रेश हुए. मैंने अपनी नायटी पहन ली, पर रमा ने कपड़े चेंज नहीं किए.
 खाना खाते समय फिर चोर की बाच निकली- कोई खुल कर बोल नहीं रहा था. मैंने भी अनसुनी कर दी.
 खाने के बाद ड्राईंग रूम में बैठे थे, तभी रमा के भाई के दोस्त पहुंच गये. रमा, रमा का भाई राघवेन्द्र और उनके 5-6 दोस्त. तब मु­ो सम­ा में आया कि रमा ने कपड़े क्यों नहीं बदले.
मैं गाउन पहन चुकी थी और वहां बैटना अटपटा लग रहा था, तो ड्राईंग रूम से उठ कर मां के पास आ गई.
वे बाबूजी के लिए पान पराग में ठंडाई, इलाइची, लौंग और कुछ-कुछ मिला कर मुख शुध्दि की तैयारी कर रही थी.
मां अपने घर गांव की बातें करने   लगीं. और वर्तमान युग में आये परिवर्तन से नाराजगी दिखाने लगी. वे बता रही थी, जो मान-सम्मान पहले मिलता था उसमें कमी आ गई है. जो हमसे आंख उठा कर बात ें नहीं कर पाते थे आज हमारी जमीन हथियाने के फिराक में हैं. नौकर नहीं मिलते. पूरा घर इन नौकरों के हाथों में है कही ताला नहीं लगता फिर भी कोई नौकर नहीं टिकता. शराब ने इन्हें बर्बाद कर दिया है. घर सुरक्षित नहीं है. रोज दो नौकर रात में घर की रखवाली करते हैं, फिर भी चोर बगीचे की तरफ से कूद-फांद कर आ जाते हैं. फिर चोर की बात निकली, तो मु­ासे रहा नहीं गया.
मैंने कहा-मां, ये चोर क्या हैं, क्या घर में बार-बार चोरी हो रही है?
-मत पूछ, हमारी किस्मत अच्छी है. चोर चोरी करने में सफल होता उससे पहले रमा की नींद खुल जाती है.
मैंने कहा- रमा जल्दी सो जाती है इसलिए कोई भी खटका होता होगा, तो उसकी नींद टूट जाती होगी.
-हूं, मैं और तेरे बाबूजी ऊपर के कमरे में रहते हैं. उपर ही राघवेन्द्र का कमरा है. रमा और सौमेन्द्र इस तरफ अपने-अपने कमरे में रहते हैं. आंगन के एक तरफ के कमरे में उनके बड़े बाबूजी और दो नौकरों का कमरा है. पूरे घर में चारों तरफ सभी की उपस्थिति के बाद भी चोर की हिम्मत बढ़ी हुई है. कल ही रमा ने चोर-चोर चिल्लाया, तो सभी जागे. चोर बगीचे की चारदीवारी को फांद कर भाग गया.
रमा ड्राईंग रूम से मेरे पास आ गई. कुछ देर बैठने के बाद सभी अपने-अपने कमरे में चले गये.
गांव में कहीं किसी की आहट नहीं मिल रही थी, लगा मानो पूरा गांव चादर ओड़ कर सो गया है.
रमा कपड़े चेंज कर बिस्तर में पहुंची. सोते-सोते इधर-उधर की बातें बताने लगी, पर अंजान चेहरों के विषय में रूचि नहीं होने से कब मेरी नींद लग गयी, पता नहीं चला.
दूसरे दिन भी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं आया था, लेकिन मु­ो बगीचे में रोज सब्जियों को टोकरी में ले जाने की प्रक्रिया देखनी थी, तो बिना किसी से कुछ कहे बगीचे चली गई.
परदेसी टोकरी और सब्जी के नाम के साथ एक कापी में कुछ नोट कर रहा था. एक घंटे वहां बिताने के बाद नहाने के लिए मैं बाथरूम में पहुंची.
आज दोपहर में ताश रमा के बगैर खेला गया. रमा ने साफ-साफ मना कर दिया कि रात में नींद पूरी नहीं हुई है. मु­ो सोना है. बाबूजी और मां आज हमारे साथ थे. मां को बार-बार हराने में मजा आ रहा था. बाबूजी भा खुस थे. आज शाम में सिर्फ चाय नहीं उसके सात नाश्ता लेकर पुरूषोत्तम पहुंचा.
रमा बाहर जाने की पूरी तैयारी कर कमरे में पहुंची. सभी को ताश खेलना बंद करवा कर ही मानी.
मैं तैयार होकर आयी और मंदिर निकल गये. आज 8 बजे मंदिर के चबूतरे में बैठने के बजाय सीधे हम घर पहुंच गये. जल्दी खाना खाना हो गया. काम जल्दी समेट कर पुरूषोत्तम खुशी-खुशी किचन से निकल गया. उसे आज जल्दी छुट्टी मिल गयी थी.
9 बजे खाना और 10 बजे तक सभी के अपने-अपने कमरे में रवानगी के बाद लगा कि इतनी जल्दी मु­ो नींद आनी नहीं है, क्या करूं?
-रमा मु­ो कुछ पढ़ना होगा, तभी नींद आयेगी. इतनी जल्दी सोने की आदत नहीं है.
-एक बात बतानी थी, आब तेरे से क्या छिपाना.
-क्या?
-मेरा ब्वायफ्रेण्ड रात में मिलने वाला है. ये उसी की तैयारी है.
-मतलब?
-जब घर के लोग सो जाएगे तभी मुलाकात होगी उससे.
-पर रायपुर में जो तेरा...
-वो शहर के लिए है और ये गांव के लिए.
-तू क्या कह रही है. कभी इन दोनों का आमना-सामना हो गया, तो मारी जाएगी. फिर रात में क्यों बुला रही है, दिन में भी तो मिला जा सकता है?
तुम शहरी लोग. ना मु­ो प्रवीण से शादी करनी है ना इस राकेश से. मैं जिन्दगी का मजा ले रही हूं. शादी तो मां बाबूजी की पसंद के लड़के से करूंगी, ताकि कभी कोई परेशानी आए तो उन पर दोष मढ़ सकूं.
लम्बे समय से रमा से दोस्ती होने के बावजूद मैंने रमा के इस रूप को नहीं देखा था. कालेज में जब तक साथ रहते, पढ़ाई और मैडम-सर की बातें होती थी. हां एक बार प्रवीण से जरूर रमा ने मिलवाया था. हम तीनों ने एक साथ सिनेमा हाल में फिल्म देखी थी. तब मु­ो लगा था कि उनका ध्यान फिल्म में कम एक दूसरे के करीब आने में ज्यादा है. मैं थोड़ी डिस्टर्ब हुई थी, लेकिन यह सोच कर ख्याल को परे कर दी कि मैं रमा से ईष्या तो नहीं कर रही हूं?
आज जब एक नये ब्वायफ्रैेण्ड से रात में मुलाकात की बात सुन मैं डर सी गई.
-अरे घबराने की कोई बात नहीं है. परदेसी को बगीचे की सब्जियों का एक चौथाई हिस्सा मेरी तरफ से मिलता है, उसके पगार के अलावा. वही रात में बगीचे में राकेश को लेकर आता है फिर संकेत के लिए बगीचे की लाईट को तीन बार आॅन-आॅफ करता है. मेरे पहुंचते ही उसे अपने घर जाने की छुट्टी मिल जाती है. वह भी खुश रहता है. उसे भी अपनी बीवी से मिलने का मौका मिल जाता है. उपर से रूपये भी. आज तक ये भेद नहीं खुला है.
-बड़ी हिम्मत है. मेरी कल्पना से बाहर. खैर तेरा अपना निर्णय तेरी अपनी जिन्दगी. पर रमा प्लीज मेरा तेरे से हाथ जोड़ कर निवेदन है आज की रात ऐसा मत कर. कल वैसे भी मैं अपने घर चली जाउंगी फिर जो चाहे कर लेना. कहीं तू पकड़ी गई तो मेरे बारे में तुम्हारे घर के लोगों की क्या राय बनेगी. प्लीज रमा आज रात नहीं.
हसते हुए रमा बोली-परसो से जो चोर-चोर की बातें हो रही है, वह चोर   नहीं राकेश था. राघवेन्द्र ने अपने कमरे की लाईट जलाई, तो बगीचे से प्रकाश दिख गया. शायद वह बाथरूम गया था, इसलिए हमारी अच्छे से मुलाकात नहीं हो पायी. उसे बगीचे की चारदीवारी से कूद कर भागने मजबूर होना पड़ा. ऐसा नहीं करती तो पकड़ी जाती. राघवेन्द्र के अपने कमरे से नीचे आते तक मैं आंगन तक पहुंच गई ती और वहीं से चोर-चोर चिल्ला कर सभी का ध्यान दूसरी तरफ खींची.
-तो ये चोर जो बार-बार तेरे घर में आता है, वह तेरा चितचोर है?
-हां बैंक में है कैशियर. 1-2 साल यहां रहेगा. फिर ट्रांसफर हो जाएगा. ना मैं उसे पहचानूंगी ना वे ...
मेरी रात आंखों-आंखों में कट गई. अब सम­ा में आया कि रमा ने क्यों दोपहर में किसी को सोने नहीं दिया और खुद रात जागने के लिए भरपूर नींद ली.
शशि  परगनिहा
2 मई 2012, बुधवार