Thursday, April 4, 2013

बस्तर की प्रचलित कहावत

बस्तर की प्रचलित कहावत
छत्तीसगढ़ में बस्तर की अलग अहमियत है. अधिकांश लोगों में बस्तर अर्थात अर्ध-नग्न लोगों की छबि बनी हुई है लेकिन उन्हें करीब से जानने वाले उनके साहसी और मेहनती होने को नकार नहीं सकते. मैं उनकी मुख्य बोली हल्बी में जो कहावत प्रचलित है, को रख रही हूं. यह जानकारी मुझे राजीव रंजन प्रसाद लिखित उपन्यास आमचो बस्तर से मिली है. वे (ई-पत्रिका-ब्लॉग) डब्लुडब्लुडब्लुडॉटसाहित्यशिल्पीडॉटकाम में भी आपको बस्तर को करीब से जानने के लिए उपलब्ध हैं.
0 जरलो घाव के तपलो लूठा. अर्थात जले को और जलाना.
0 दसराहा बोकड़ा बनायबार. अर्थात बली का बकरा.
0 घरे निहांय राएँधा दुआरे भैंसा बांधा. अर्थात घर में चूल्हा नहीं जला और दिखाने को द्वार पर भैंसा बांध रखा है.
0 जानतोर ना भानतोर, कानी कौड़ी गनतोर. अर्थात जानकारी नाम मात्र की नहीं और अंधी कौड़ियां गिनने चले.
0 पानी के नी दखुन फटई हिटातोर. अर्थात पानी को बिना देखे कपड़े उतारना.
0 काकड़ा एओ हात बाचो. अर्थात केकड़ा हाथ आये और हाथ भी बचे. याने सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे.
0 मूंड के फुलाईकारी छुरा के काय हरबार (भतरी कहावत) अर्थात बाल मुडाने के लिए सिर को भिगो लिया है तो छूरे से क्यों डरना. याने जब ओखली में सिर दे दिया तो मूसल से क्या डरना?
0 मसागतना करले, मूंसा मांस ना मिरे (भतरी कहावत) मशक्कत नहीं करने पर चूहे का मांस भी नहीं मिलता.
0 गाड़ी चेधुन खोटला बोहतोर. अर्थात गाड़ी पर बैठ कर भी सिर पर लकड़ी का गठ्ठर उठा रखना.
0 मूंडे चेधायबार. अर्थात सिर चढ़ाना.
0 नाके चाउर चबाय बार. अर्थात नाकों चावल चबाना.
0 दखा-दखी होयबार. अर्थात देखा-देखी होना.
0 मुंहू लड़ातोर. अर्थात मुंह लड़ाना.
0 थत्तगत होतोर. अर्थात थक कर चुर होना.
0 चुट्ट-मुट्ट होतोर. अर्थात बासी बचे ना कुत्ता खाये.
0 पंगपंगा-अर्थात पौ फटने के तुरंत बाद का धूप.
0 खेस्खेस्सा. स्वादहीन.
0 बुटबुट्टा. अर्थात कीचड़ से सना.
0 खुसखुस्सा. अर्थात चोरी छुपे.
शशि परगनिहा
4 अप्रैल 2013, गुरूवार
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1 comment:

  1. राजीव जी ने काफी मेहनत की है, इस किताब पर.

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