Thursday, November 17, 2011

सीधी भर्ती

शासकीय और अर्ध शासकीय विभागों में अब जितने भी रिक्त पद हैं, उनमें सीधी भर्ती की प्रक्रिया शुरू होने वाली है. छत्तीसगढ़ के बेरोजगार युवक-युवतियों के लिए रोजगार पाने का अच्छा अवसर है, क्योंकि सन् 2008 से लेकर सन् 2011-12 में कुल 26776 पद रिक्त हैं, जिनमें इसे भरने का काम शीघ्र ही शुरू होगा, पर मेरा छत्तीसगढ़ के बेरोजगारों को इस बात के लिए आगाह करना है कि जरा सचेत रहें कहीं यहां पलायन कर आये अन्य प्रदेशों के बेरोजगारों को यह लाभ ना मिल जाए और आप उच्च डिग्री लेने के बाद भी खाली हाथ रह जाएं. भर्ती के दौरान भाई-भतीजावाद हावी रहेगा और नेताओं-अधिकारियों से धनिष्टता नहीं होने या अंटी ढिली नहीं करने पर ये पद किसी और की झोली में गिर जाएगा. इस अवसर को अपने हाथ से जाने ना दो और जो भी नेता या अधिकारी आपके हकों पर कुठाराधात करता है, उन पर अपनी पैनी नजर बनाए रखो. एक समुह बना कर ऐसे दलालों की कारगुजारियों को सार्वजनिक करो. एकता में बड़ी ताकत है. आप सभी बेरोजगार युवक-युवतियां समिति का गठन करो और रोजगार के अवसर को समिति के सदस्यों को उनकी योग्यता के अनुसार दिलाने की कोशिश करो. इससे ना केवल कामयाबी मिलेगी वरन नौकरी प्राप्त करने में पारदर्शिता भी बनी रहेगी.

आग लगे बस्ती में

नगर निगम रायपुर के अतिक्रमण दस्ते ने बूढ़ा पारा विद्युत दफ्तर से कोचवाली चौक तक तोड़फोड़ की कार्यवाही की. बधाई, इस नेक काम के लिए. लेकिन प्रश्न यहां यह खड़ा हो रहा है कि क्या इस पीछे की लाइन में ही अवैध कब्जे हुए हैं? मेरा इन दबंग अतिक्रमण दस्ते से निवेदन है कि वे कोतवाली चौक से सदर बाजार होते सत्ती बाजार चौक तक एक दिन राह घेर कर अवैध कब्जे हटाए. अब तक किसी ने यहां तोड़-फोड़ की कार्यवाही नहीं की और अगर हुई भी तो सिर्फ ज्वेलरी दुकानों के पाटे हटाए गये, जो चंद दिनों में मार्बल टाइल्स के साथ पुन: सुसज्जित रूप से शान से खड़े हो गए.

उधार की रोशनी

आमजन से नगर पालिका एवं निगम जल, मल टैक्स के साथ मकान, प्लाट या दुकानों से मनमाना किराया प्रति वर्ष वसूल रही है, लेकिन जन सुविधा देने के मामले में फिसड्डूी साबित हो रही है. जगह-जगह गंदगी, नालियों में बजबजाते कचरे तक साफ कराने में असफल रायपुर नगर निगम प्रति साल टैक्स का भार हम पर बढ़ा कर उसे वसूलने में कतई कोताही नहीं बरत रही है. नवम्बर के महिने में भी अनेक मोहल्लों में पानी की दिक्कत बनी हुई है और उसकी आपूर्ति करने में नगर निगम टैंकरों के लिए डीजल की कमी बता कर पानी देने में आना-कानी कर रही है. ऐसे में हम या तो लाचार हैं या हमारा आक्रोश भड़कने लगता है. जब इनसे बात की जाती है, तो सिर्फ आश्वासन मिलता है, देख रहे हैं. शीध्र ही व्यवस्था ठीक कर ली जाएगी. यदि हम टैक्स देने में विलम्ब करते हैं, तो तत्काल निगम अमला सक्रिय हो, हमें परेशान करने में देरी नहीं लगाता, पर इसी निगम ने विद्युत मंडल को करोड़ों का रूपया विद्युत बिल का नहीं दिया है. ऊपर ढोल अंदर पोल-रायपुर नगर निगम प्रति दिन नगर निगम मुख्यालय और इसके अधिन आने वाले क्षेत्रों में अनावश्यक विद्युत की खपत करता है. कभी देखें दिन में भी सड़कों की लाईटें जलती रहती है, तो जिस कमरे में कोई ना हो वहां भी एसी, पंखा और लाईटें जगमगाती रहती है. इन पर यदि कंट्रोल किया जाए और लापरवाही ना बरती जाए तो विद्युत बचायी जा सकती है. लेकिन ऐसा ना हो रहा है ना होगा, इसी के चलते रायपु नगर निगम को विद्युत मंडल को एक करोड़ रूपया बिजली बिल की राशि देना है. मजे की बात यह है कि इस मामले में विद्युत मंडल भी बील वसुलने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहा है.

Tuesday, November 15, 2011

करे कोई भरे कोई 8 नवम्बर 2011 का दिन एतिहासिक होते जा रहा है और हो भी क्यों नहीं. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का जन्मदिन जो था, पर इसके पीछे जो राजनीति हुई वह इतनी सुर्खियां बटोर रही है कि मामला कोर्ट में जा पहुंचा है. 9 नवम्बर को मैंने दो ऐसे कवियों का जिक्र करते हुए एक प्रश्न अपने साथियों के साथ शेयर किया था कि जन्मदिन नहीं मनाने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने 17 लाख से अधिक की राशि इसके कारण बताने कविता के रूप में विज्ञापन छपा कर खर्च कर दिए तो इसके जवाब में एक कविता हमें दूसरी पार्टी के तरफ से पढ़ने को मिल गया. अब अगली लड़ाई इस बात को लेकर है कि दूसरी पार्टी ने क्यों इस कवितानुमा गीत को प्रकाशित करने के लिए सरकारी विज्ञापन एजेंसी के तहत इसे छपाया. दरअसल सरकारी खजाने को इस तरह से वार करने के नाम पर खर्च नहीं किया जा सकता. इस पर संविधान के अनुच्छेद 14 व 21 का उल्लंघन होता है. सचमुच यहां गलती हुई है. क्या इस विज्ञापन को प्रकाशित कराने किसी मंत्री से सलाह नहीं ली गयीहोगी? क्या इसके पीछे किसी मंत्री या नेता का हाथ नहीं होगा? क्या इसके लिए वे अधिकारी जिम्मेदार हैं, जिन्होंने ये विज्ञापन रिलीज करने सरकारी विज्ञापन एजेंसी का इस्तेमाल किया? यदि ऐसा किसी अधिकारी ने किया तो विज्ञापन रिलीज होने से पहले उस नेता या मंत्री ने उस पर अपने हस्ताक्षर तो किये ही होंगे? जो भी हो मंत्री या नेता का नाम आये बगैर इन अधिकारियों पर गाज गिरने वाली है, जिन्हें इस तरह की राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है.

Wednesday, November 9, 2011

कैसे मनाऊं जन्मदिन?

कैसे मनाऊं जन्मदिन? 59 वर्षीय छत्तीसगढ़ प्रदेश् कांग्रेस अध्यक्ष नन्द कुमार पटेल का 8 नवम्बर 2011 को जन्मदिन था. वे प्रदेश की जनता विशेष कर गरीब किसानों की पीड़ा अ‍ैर प्रदेश की भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार से इतने व्यथित हुए कि अपना जन्मदिन नहीं मनाने के लिए भोजराज कृतार्थ नामक एक कवि से 44 लाईनों की कवितामय गीत का सृजन करवा अपनी गंभीर मुद्रा वाली क्लोअप फोटो के साथ स्थानीय अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित कराया जिस पर 17 लाख 65 हजार 500 रूपये खर्च कर दिए फिर भी यह कहते हैं- कैसे मनाऊं जन्मदिन? इस खर्चिलें जन्मदिन पर पलटवार करते हुए भाजपा (अभी छत्तीसगढ़ में इनका शासन है) ने मुझे नहीं शिकायत उनसे... श्ीर्षक से 35 लाइन की कवितानुमा गीत कवि रामू पटेल से लिखा कर अखबारों में छपा दी. तू डाल-डाल मैं पात-पात. इस लड़ाई का फायदा मिल गया अखबार मालिकों को. जन सेवा में लगे प्रदेश सरकार के पास वक्त की कमी के कारण कांग्रेसियों के वार पर प्रतिवार करने भाजपा प्रदेश महामंत्री और प्रवक्ता शिवरतन शर्मा को यह काम सौंप दिया गया है. अब शिव रतन शर्मा नंद कुमार पटेल पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं और उन्होंने ही यह खुलासा किया है कि पटेल ने 17 लाख रूपये विज्ञापन छपाने में खर्च कर दिये. नंद कुमार पटेल, जब छत्तीसगढ़ राज्य बना, तब कांग्रेस के शासन काल में ग्रह मंत्री बने. ये वही पटेल हैं, जिन्होंने आरंग में सिंचाई के लिए पानी मांग रहे किसानों पर जमकर लाठियां बरसवायी थी. ये वही पटेल हैं, जो सत्ता सुख भोगने के समय कोसमसरा में अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग की महिलाओं पर दमनात्मक कार्यवाही की थी. ये वही पटेल हैं, जो आदिवासियों को रायपुर मेडिकल कालेज के सभागृह में दौड़-दौड़ कर पिटवाये. ये वही पटेल हैं, जिनके गृह मंत्री के पद पर रहने के दौरान डीएसपी भास्कर दीवान समेत 27 पुलिस कर्मी की नक्सली वारदात के समय शहीद हुए. ये वही नंद कुमार पटेल हैं, जिनके शासन काल के दौरान दिन दहाड़े एनसीपी के नेता रामवतार जग्गी को गोलियों से भून दिया गया. जब हम किसी पर कीचड़ उछालते हैं तो उसके छींटे हम पर भी पड़ते हैं. इसलिए यह जरूरी है कि पहले अपने गिरेबॉं में झांक लें कि हम कितने पानी में हैं. राजनीति एक ऐसी जंग है, जहां एक बात के अनेक अर्थ निकलते और परिभाषित होते हैं. अगर आप वार करेंगे तो पलटवार के लिए आपको तैयार रहना होगा. पटेलजी को मेरी सलाह है कि उन्हें चुपचाप अपना जन्मदिन बना लेना था आखिर कहीं ना कहीं उनके नाम का केक कटा ही. उनके नाम पर गरीबों, असहाय और जरूरतमंदों को मिठाई, फल, कापी-पेन और कंबल बांटे गए. यदि वे सार्वजनिक रूप से अपना जन्मदिन मनाते तो यही सब तो होना था इससे ज्यादा वे करते भी क्या? आखिर लालकृष्ण आडवाणी ने भी तो अपनी यात्रा रद्द कर दिल्ली में अपना जन्मदिन मनाया की नहीं? ऐसे में प्रश्न उठता है कि उन्होंने अपने जन्मदिन में मिठाई खायी नहीं होगी? क्या मोमबत्ती जला केक नहीं काटा होगा? यदि उन्होंने मोमबत्ती नहींजलाई और केक नहीं काटा तो यह अच्छा ही किया क्योंकि भारतीय संस्कृति में केक काटने की परंपरा है ही नहीं.

भक्तों की पूर्णाहूति

भक्तों की पूर्णाहूति 4 मार्च 2010 के दिन प्रतापगढ़ जिले में कृपालु महाराज ने अपनी पत्नी की स्मृति में भंड़ारे का आयोजन किया था, तब उन्होंने अपने भक्तों को बर्तन और सूती धोती देना शुरू किया. इस प्रसाद को पाने भक्तों ने ऐसा उत्साह दिखाया कि वहां बने गेट को तोड़ डाला और 63 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. 100 से अधिक घायल हो गये. इसकी जांच केआदेश तो हुए पर अब तक इस पर क्या कार्यवाही हुई किसी को कुछ भी पता नहीं है. 16 अक्टूबर 2010 में बिहार के एक मंदिर परिसर में भगदड़ मची और 10 भक्तों की वहीं समाधि बन गई. कोलकाता में भी सन् 2010 में एक बड़ा हादसा गंगा स्नान के समय हो चुका है. अब सन् 2011 में एक बार फिर हरिद्वार में पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जन्म शताब्दी महोत्सव पर कल मंगलवार 8 नवम्बर 2011 को यज्ञ कुण्ड तक पहुंचने भक्तों ने ऐसा उतावलापन दिखाया कि 20 भक्तों, जिनमें बुजुर्ग और महिलाएं थी, की पूर्णाहूति हो गई. सरकारी आकड़ों के अनुसार आहतों की संख्या 50 बतायी जा रही है. कई परिवार के सदस्य गुम हो गए हैं, जिन्हें खोजने में भक्तों की हालत खराब हो रही है. यह हादसा मुझे इसलिए भी झकझोर रहा है, क्योंकि इसमें मरने वालों में कुछ मेरे प्रदेश छत्तीसगढ़वासी भी हैं. इस तरह के धार्मिक आयोजनों की आखिर जरूरत क्यों पड़ती है? क्या यह हमारी धार्मिक भावनाओं के साथ खेलना नहीं है? जब आप यह मान कर चलते हैं कि हमारे अनेक अनुयायी हैं और वे इसमें भाग लेने आयेंगे, तो उनके लिए समस्त व्यवस्था क्यों नहीं की गई? क्यों उस प्रदेश की सरकार से व्यापक सुरक्षा और व्यवस्था बनाये रखने सहयोग नहीं मांगा गया? क्यों स्वयंसेवकों को पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं दिया जाता, जिन्हें विभिन्न जिम्मेदारी सौंपी गई होती है? क्यों आवागमन के लिए सकरी गली बनायी जाती है? क्यों बांस के बैरिकेट बनाये जाते हैं? क्यों यह जानने समझने की कोशिश नहीं की गई कि 1551 यज्ञ बेदियों से निकलने वाले धुएं से अस्थमा के मरीजों, बच्चों, बुजुर्गो की तकलीफ बढ़ सकती है और वे अस्वस्थ हो सकते हैं? जब इस महा यज्ञ की पिछले एक साल से योजना बना कर काम किया जा रहा था तो इसके अच्छे और बुरे दोनों पहलुओं को क्यों नजरअंदाज कर दिया गया? क्यों यातायात संचालन के लिए स्वयंसेवकों ने गंगा पर श्रमदान कर एक किलो मीटर का पुल निर्माण किया, जिसमें शासन से मदद नहीं ली गई? क्यों इस पुल को बनाते समय किसी इंजीनियर से सलाह नहीं ली गई कि भारी भीड़ में अनेक लोगों का भार वह वहन कर पायेगी या नहीं? ऐसे अनेक प्रश्न खड़े हो रहे हैं, जो गायत्री परिवार के प्रमुख डा. प्रणव पंडया की लापरवाही को उजागर कर रहे हैं. अब यदि वे इस दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार भी लें और मृतक परिवार को 2-2 लाख की राशि देने की घोषणा कर दें, तब भी हुई क्षति की भरपाई नहीं हो सकती. गायत्री परिवार ने इस शताब्दी समारोह को मनाने जहां-जहां इनके अनुयायी और मंदिरों का निर्माण हुआ है वहां भी इस तरह के आयोजन कर रही है फिर अलग से हरिद्वार में इस आयोजन की आवश्यकता ही क्यों पड़ी? क्या इसलिए कि धार्मिक ज्ञान का इस्तेमाल अपने व्यवसाय को चमकाने में किया जाए? गायत्री परिवार ने अपने कुछ सिध्दांत बना रखे हैं, जो बहुत ही अच्छे और ज्ञानवर्धक हैं लेकिन अब तक जो पुण्य और यश गायत्री परिवार ने कमाया था वह इस हादसे ने धो दिया. व्यवस्था का अभाव इन हादसों का सबसे बड़ा कारण है. जब तक भीड़ तंत्र को समझा नहीं जाएगा तब तक उस प्रदेश की सरकार को ऐसे आयोजन करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि पिछले 10 सालों में सरकारी आकड़ों के अनुसार 1000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.

श्याम राव उर्फ स्वामी अग्निवेश

श्याम राव उर्फ स्वामी अग्निवेश
नाम- श्याम राव उर्फ स्वामी अग्निवेश
जन्म- 21 सितम्बर सन् 1939
भाई- अप्पा राव, जगन्नाथ राव, बलभद्र राव और जगदीश राव
बहन- लक्ष्मी राव और नरसुख राव
नाना- दाशरथी राव, जो छत्तीसगढ़ के सक्ति राजा लीलाधर सिंह के दीवान थे.
दाशरथी राव की बेटी (अग्निवेश की मां) आंध्र प्रदेश में ब्याही गई.
अग्निवेश की मां अपने पति के निधन पश्चात 7 बच्चों के साथ पिता के पास छत्तीसगढ़ के सक्ति में आ गई.
पढ़ाई- आदर्श विद्या मंदिर पूर्व माध्यमिक सक्ति में 8 वीं तक की पढ़ाई.
डिग्री- कोलकाता कालेज से कानून और अर्थ शास्त्र की डिग्री.
नौकरी- 1963 से 1968 तक कोलकाता में सेंट जेवियर कालेज में बिजनेस मैनेजमेंट के लेक्चरर रहे.
राजनीति- 1970 में आर्य समाज नाम से राजनैतिक पार्टी का गठन.
मंक्षी- 1977 में हरियाणा में विधान सभा चुनाव लड़े. विजयी होने पर हरियाणा में 1979 से 1982 तक शिक्षा मंत्री के पद पर रहे.
गठन- 1981 में बांडेड लेबर लिबरेशन फ्रंट का गठन किया, जिसके दो बार चेयर पर्सन बने.
आर्य समाज- वर्ल्ड काउंसिल आॅफ आर्य समाज की स्थापना की.
पहचान मिली- बंधुआ मजदूरों की मुक्ति के लिए बंधुआ मुक्ति मोर्चा का काम करने से.
बखेड़ा- 2005 में ओड़िशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर के पट (दरवाजा) गैर हिन्दुआो के लिए खोलने की बात कहने पर विवाद में आये. तब पंडितों ने उन्हें हिंदू विरोधी विचारधारा वाले व्यक्ति कह बखेड़ा खड़ा किया.
पथराव- मार्च 2010 में छत्तीसगढ़ के बस्तर (नक्सली क्षेत्र) में नक्सली हमले का जायजा लेने पहुंचे तो उनकी कार में पथराव हुआ.
आस्था पर सवाल- अमरनाथ यात्रा व हिंदुओं की आस्था पर सवाल उठा फिर चर्चा में आए. उन्होंने बयान दिया कि बर्फानी बाबा अमरनाथ बर्फ का टुकड़ा है. न्यायालय में यह मामला चल रहा है.
विवाद- अन्ना हजारे के आन्दोलन का समर्थन किया. 16 अगस्त 2011 को उन्होंने कपिल मुनि से मोबाइल में बात करते हुए कहा कि अन्ना हठी और पागल हाथी हैं. इसकी सीडी जारी होने के बाद विवाद शुरू हुआ और अन्ना कोर कमेटी की सदस्यता से उन्हें हटा दिया गया.
चकाचौंध- कलर्स चैनल के कार्यक्रम बिग बॉस के घर के अंदर आज 9 अगस्त 2010 को प्रवेश.
वे सुर्खियों में बने रहने का मोह त्याग नहीं पा रहे हैं. अब यहां से समाज सेवा के लिए सन्यास धारण करने वाले श्याम राव उर्फ अग्निवेश उन महिलाओं और कन्याओं के साथ चौबीसों घंटे साथ रहेंगे और उनकी तरह वैसा ही खान-पान करेंगे. अब देखना यह है कि स्वामी अग्निवेश यहां कैसे-कैसे अग्नि बाण छोड़ते हैं, आप सभी तैयार रहें.

Tuesday, July 26, 2011

ए· दर्दना· मौत

ए· दर्दना· मौत
हम तब सचेत होते हैं जब हमें चोट पहुंचती है. हमें नु·सान होता है या भविष्य ·ी योजनाओं में नजर डालते हैं, तब लगता है
·ि ये हमारे लिए खतरना· साबित होगा, तो यों ना वहां मरहमपट्टी ·र ली जाए. ·ुछ ऐसा ही देश ·े नेता ·रते हैं. चुनाव में
विजयी होने ·े बाद वे फूल-मालाओं से ढ·े तुपे रहते हैं. जब वह गले से उतरता है तो ाोष ााओं ·ा पिटारा खोल देते हैं और
अखबारों में अपनी फोटो ·े साथ लंबे-चौड़े बयान दे·र लोगों ·ो खुश ·रने में लग जाते हैं. उस·े बाद यह देखने ·ी ·ोशिश
नहीं ·रते ·ि उन ाोष ाा पर अमल हुआ या नहीं. प्रदेश ·े मुखिया ·ा यह ·ाम होता है ·ि उन·े मं ाीग ा या ·ह रहे और
·र रहे हैं. उ होंने ·ब या ·हा और उस·ा या हुआ. ले·िन न तो नेताओं ·ा अपने अधिर·ारियों पर उचित लगाम होता है ना
ही ·िसी ·ार्य या ाोष ााओं ·ी प्रगति ·ी गंभीरता से समीक्षा ·ी जाती है.
अभी हाल ही में न सली वारदातें छ.ग. में तेजी से बढ़ी है, जिस·े अधि·तम शि·ार हमारे जवान एवं निरीह ग्रामी ा हो रहे हैं.
यह अलग बात है ·ि मैनपुर ·े पास ·ांग्रेसियों ·ो गलत सूचना ·े चलते हादसे ·ा शि·ार होना पड़ा. इन बीहड़ जंगली क्षे ाों में
ही यों हादसे, दुर्धटनाएं एवं वारदातें होती है? इस·ा विस्तार से ·ार ा या समाधान ·ी बात ·रनी बेमानी होगा यों·ि हर
संवेदनशील जागरू· नागरि· ·ो पता है ·ि ऐसे त वों से ·ैसे और ·हां निपटा जा स·ता है ले·िन हमारे नेताग ा एवं प्रमुख
अधि·ारी यह ·ह ·र अपना पल्ला झाड़ लेते हैं ·ि ·े द्र सर·ार से जैसी मदद चाहिए नहीं मिल पा रही है. अब आम जनता
भी समझने लगी है ·ि प्रदेश और देश में भि न-भि न पार्टी ·े स ाा में बैठने ·ी वजह से ए· दूसरे पर दोषारोप ा ·र अपना
उल्लू साधा जा स·ता है.
मुझे विचलित ·िया उस ाटना ने जो ·ेश·ाल क्षे ा ·े नि दीडीह गांव ·ी मेहतरीन मर·ाम ·े साथ ाटी. गौर ·रें उस व त
हमारे मु य मं ाी बीजापुर में थे और जिला मु यालय में 60 ·रोड़ रूपये ·ी लागत से 30 विभि न वि·ास और निर्मा ा ·ार्यों ·ा
लो·ार्प ा और भूमि पूजन ·े साथ खेल सुविधा ·े नाम पर लॉन टेनिस ग्राउ ड ·ी सौगात देते फोटो खिंचाने में व्यस्त रहेे, जब·ि
उस समय ए· महिला अपनी बीमारी और गरीबी ·े चलते दर्दना· मौत ·ो गले लगा रही थी. आज ·े अखबार में मु य मं ाी
·ी फोटो और ाोष ााएं प्र·ाशित ·ी गई हैं, जो उन·ी ाोष ााओं ·ो झुठलाने में सहाय· है.
हम देख और समझ रहे हैं ·ि छ.ग. ·े आम व्य ित ·ो वो बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिल रही है, जिस·े वे ह·दार हैं. ग्रामी ा
एवं आदिवासी इला·ों ·ो आप छोड़ ही दें शहरी या ·हें राजधानी में भी ना शिक्षा, स्वास् य, शु द पेयजल, रोजगार ·ी ·ोई
सुविधा जि हें गरीबी में उ हें व उन·े परिवार ·ो मिलनी चाहिए मिल पाती है, तो ग्राम, ·स्बा या बीहड़ अंचलों में निवासरत
लोगों ·ो ·िस तरह ·ी सुविधा मिलती होगी इस·ी ·ल्पना ·रने मा ा से रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
नि दीडीह ·ी मेहतरीन मर·ाम ·ो खून ·ी ·मी ·े साथ मलेरिया ने ज·ड़ लिया था. उस·े परिजनों ने ·ेस·ाल ·े सर·ारी
अस्पताल में उस·ा इलाज शुरू ·राया, ले·िन इतने बड़े अस्पताल में ए· गरीब महिला ·े लिए खून चढ़ाने ·ी सुविधा नहीं होने
से उसे यह ·ह ·र छुट्टी दे दी गई ·ि इसे ·ां·ेर ले जाए. वहां ·े डा टरों ने यह सोचना मुनासिब नहीं समझा ·ि आखिर
गंभीर रूप से बीमार महिला ·ो जिन·े पास रूपये-पैसे नहीं हैं ·िस तरह से ·ां·ेर त· ले·र जाएंगे. गरीबी ने महिला ·े
परिजनों ·ो बीमार महिला ·ो गोदी में उठा ·र ले जाने मजबूर ·र दिया. ·ेस·ाल से ·ां·ेर ·ी दूरी 30 ·िलो मीटर ·ी है
और ·ेस·ाल ·ी ााटी जिसमें अने· जगह ाुमावदार रास्ते हैं जिसमें ·भी ढलान है तो ·भी चढाई वे ·ैसे ए· बीमार महिला
·ो ले·र यह साहस दिखाए, सोच ·र मन द्रवित हो जाता है. बद·िस्मती देखिए ·ि उ त महिला ने समय पर इलाज नहीं मिल
पाने से बीच रास्ते में ही दम तोड़ दिया.
अब जब यह बात खुल·र सामने आयी तो ·ां·ेर ·े डा टर ·ह रहे हैं ·ि समय पर महिला ·ो लाया जाता तो उस·ी जान
बचायी जा स·ती थी. वहीं ·ेस·ाल ·े प्रमुख अधि·ारी ·ह रहे हैं ·ि यह बात मेरी जान·ारी में नहीं है. या ए· बीमार ·ा
इलाज ·र उसे जीवनदान देते ·ा सं·ल्प लिए डा टर इतने संवेदनहीन हो गये हैं ·ि उस महिला ·ो ए· ए बुलेंस ·ी सुविधा
मुहैय्या नहीं ·रा पाये. या यही मेरा प्रदेश है जहां आपसी भाईचारा ख म हो गया है और लोग अमीर-गरीब में भेदभाव ·रने से
चू· नहीं रहे हैं. या होगा मेरे छ ाीसगढ़ ·ा?
शशि परगनिहा
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Wednesday, May 11, 2011

गांवों में सुधार के प्रयास पर लग रहा दाग

गांवों में सुधार के प्रयास पर लग रहा दाग
हमने अपने रोजमर्रा के जीवन में आचार-विचार में संस्थागत घर्म की वर्जना की है. युग और समय के साथ ताल मिलाकर प्रवहमान
लौकिक घर्म को ग्रहण किया है, लेकिन इसे जो तोड़ता है, उसे दण्ड देने का भी प्रावधान है. देश के हर उस छोटे-ाड़े गांव जहां के
निवासी आपसी भाईचारे के साथ सुख-दुख के साथी ान एक दूसरे की मदद के लिए आगे ाढ़ते हुए हंसते-ोलते, खिलखिलाते अपनी
उम्र काट देते हैं वहां भी कुछ ऐसे लोगों की टोली होती है, जो जोड़-तोड़ में लगे रहते हैं और एक हंसते-खेलते गांव की शांति में खलल
ड़ालते हैं. पहले ऐसे ही उपद्रवी तत्वों को दण्ड देने या गांव में अमन ानाये रखने ाुजुर्गों के मतों को सभी स्वीकार करते थे. ये गांव के
सयाने वृद्धजन ग्राम विकास की ओर भी अपने अनुसार कार्य करते थे, लेकिन ााद में यही कार्य पंच-सरपंच के जिम्मे आया, जिन्हें गांव
की प्रगति और खुशहाली का कार्य सौंपा गया.
पंचायतीराज प्रणाली-निचले स्तर पर स्वशासन के लिए पंचायतीराज प्रणाली शुरू की गई. लोगों की जरूरतों और आकांक्षाओं के
अनुरूप विकासात्मक कार्यक्रमों की विकेन्द्रित योजनाएं ानाने और इनको अमल में लाने के लिए पंचों-सरपंचों का होना प्रत्येक गांव में
आवश्यक है. सरकार ने इसीलिए गांवों के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए पंचायतीराज संस्थाओं के महत्व दिया. पंचायतीराज
अधिनियम में पंचायतों के लिए नियमित तौर पर हर पांच वर्ष पश्चात चुनाव कराने और निम्न जाति वर्ग को प्रतिनिधित्व देने अनुसूचित
जाति व जनजाति के लिए सीटों का आनुपातिक आरक्षण की व्यवस्था की गई. महिलाओं को जिनका काम सिर्फ घर की चारदीवारी में
कैद हो पत्नी, मां, ोची, ाहन का कर्तव्य निभाना था, उन्हें भी शिक्षा के साथ नेतृत्व करने के लिए कम से कम 33 प्रतिशत सीटों का
आरक्षण दिया गया. सरकार की यही मंशा है कि प्रभावी विकेंद्रीकरण गांव स्तर तक पहुंचे. ग्राम पंचायतें निचले स्तर पर जनतंत्र की
महत्वपूर्ण संस्थायें, जो प्रत्येक व्यक्ति तक जाए इसके लिए ही ग्राम पंचायतों का स्वरुप तैयार किया गया. पंच-सरपंच ही जिन्हें उस गांव
के युवा से लेकर ाुजुर्ग तक चुन कर लाते हैं, ग्रामीण विकास मंत्रालय के कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में प्रमुख भूमिका अदा करते हैं.
उद्देश्य-ग्रामीण विकास मंत्रालय के कार्यक्रमों का उद्देश्य गांवों में मूलभूत सुविधाओं में हर प्रकार का सुधार लाना और गरीाी हटाना
है. इन कार्यक्रमों को और प्रभावी ानाने व कार्य कुशलता ाढ़ाने समय-समय पर कार्यक्रमों में संशोधन भी किये जाते रहे हैं, लेकिन चुने
हुए प्रतिनिधि विकास के नाम पर कुछ कार्य करते हैं और इस मद पर प्राप्त राशि हड़पने की जुगत में लग जाते हैं. इसके पीछे जो प्रमुख
खामी नजर आती है वह यह है प्रत्येक ग्रामीण को अपने अधिकार और ग्रामीण विकास कार्यक्रमों की समुचित जानकारी नहीं होती.
विकास कार्यों का यथा समय पूरा नहीं होने या किसी कार्य को पूर्ण कराने में ईमानदारी का अभाव पंच-सरपंच को कई ाार अपने पद से
मुक्त होने या दण्ड का पात्र भी ानाता है. सरपंच के अकेले विकास कार्य की राशि को हजम करने से भी पंचों में सरपंच के प्रति क्रोध की
स्थिति ानती है, ता अविश्वास प्रस्ताव की नौात आती है.
धोखाधड़ी-अभी हाल ही में जनपद पंचायत पलारी के तहत आने वाले गांव हरिनभट्टा के पंचों ने महिला सरपंच शकुंतला ााई के
खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव 2 के विरुद्ध 10 मतों से पारित कर दिया. कुरुद विकास खण्ड के ग्राम पंचायत कातलोड़ में मनरेगा के
तहत तालाा गहरीकरण, पौघरोपण तथा स्टापडेम निमार्ण के लिए 42 लाख 91 हजार रूपये की मंजूरी मिली थी. कार्य पंचायत के
माध्यम से शुरू हुआ और अधूरा छोड़ दिया गया, जिसे पुरा होना ाता कर राशि आहरण कर लिया गया. इसके लिए फर्जी मस्टरलोल
ानाया गया और पंजीकृत मजदूरों के नाम रूपये निकाल कर धोखाधड़ी की गई. शिकायत हुई, फिर जांच तो 65 हजार रूपये की
गड़ाड़ी मिली. इस मामले में ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के सा इंजीनियर एस. के. ठाकुर, कातलोड़ पंचायत के रोजगार सहायक रूपेश्वर
साहू , सरपंच तेजन साहू, उपसरपंच हेमंत पटेल के जेल जाना पड़ा-खिलाफ मामला थाने में दर्ज किया गया है.
धोखाधड़ी, गान एवं अनियमितता के मामले में ग्राम पंचायत गुण्डरदेही के सचिव शत्रुहन साहू और सरपंच श्रीमती ईश्वरी ााई अड़वंशी
को अंतत: जेल जाना पड़ा. 23 कमारों के नाम इंदिरा आवास के लिए 5.75 लाख की राशि को सचिव ने ौंक से आहरण कर
धोखाधड़ी एवं जालसाजी की थी वहीं महिला सरपंच के साथ मिल कर पंचायत के अनेक निर्माण एवं सहायता राशि में हेराफेरी की गई.
गान-महासमुंद जिले के ग्राम पंचायत एमकोाहरा में भी मनरेगा योजना अन्तर्गत 6.5 लाख की राशि से पड़कीपाली में पुलिया एवं
सड़क निर्माण किया जाना था, जिसके लिए 34 हजार रूपये का चेक पोस्ट मास्टर को दिया गया, जिसमें से 20 हजार रूपये का गान
सरपंच कमल नारायण साहू और चरौद के पोस्ट मास्टर भेखलाल सिन्हा ने कर दिया. आ इन दोनों के खिलाफ जुर्म दर्ज किया गया है.
ईमानदारी-ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जो हमें सचेत करते हैं कि हम जिन्हें चुन कर लाये हैं उनकी अपने गांव और वहां के निवासियों के
निवासियों के प्रति कितनी ईमानदारी है. क्या हम भ्रष्टाचार, ोईमानी करने वाले व्यक्ति को उसके पद पर ाने रहने देंगे या उन्हें यह जता
देंगे कि भइये इसलिए चुन कर नहीं लाये हैं कि अपना पेट भरो.
अधिकारों व मानदेय भत्तों की मांग-आ जैसे ही नगरीय निकायों के जनप्रतिनिधियों के मानदेय और भत्तों में ाढ़ोत्तरी हुई तो
त्रिस्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था में अपनी सेवाएं दे रहे जनप्रतिनिधियों ने शासन से अपने अधिकारों व मानदेय भत्तों को लेकर मांग तेज
कर दी है. वे चिल्ला रहे हैं जनपद पंचायतों एवं जिला पंचायतों के माध्यम से जनकस्याणकारी एवं उल्लेखनीय कार्यों का संपादन होता
है. जनपद सदस्यों को करीा 10 ग्रामों में जनसमस्याओं को लेकर जनसम्पर्क करना पड़ता है और जिला पंचायत सदस्यों को 80 से 90
ग्रामों का भ्रमण वहीं वर्तमान पंचायतीराज अधिनियम में कियी प्रकार से विकास निधि कार्य के लिए स्वीकृत करने का अधिकार
प्रतिनिधियों को नहीं दिया गया है.
मांगे जायज है? -सरपंच संघ की जगह-जगह ौठकें हो रही है. ौठक में मुख्य रूप से मानदेय, पेंशन, निर्माण कार्यों की सीमा ाढ़ाने
और ाीमा सुविधा में वृद्धि की मांग जोर पकड़ रही है. यह भी मांग ानी हुई है कि सरपंचों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का प्रावधान
समाप्त किया जाए. सरपंच इस ाात पर भी जोर दे रहे हैं कि पंचायतीराज अधिनियम ानाते समय तीन पुरुष व दो महिला सरपंच मिलाकर
कुल 5 सदस्यों की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए. इसमें से कुछ मांगे जायज है तो कुछ मांगें गले नहीं उतर रही है. जैसे सरपंचों
के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव समाप्त करने की मांग. जा पद से हटा दिए जाने का भय ाना हुआ है फिर भी गड़ाड़ी की जारही है, तो
यह मांग पूरी हो जाएगी तो वे क्या करेंगे? इस महत्वपूर्ण पद में रौा, रूताा, मान-सम्मान और पैसा है हांलाकि यह सासे ठोटी इकाई है,
पर सरकार की जनकल्याणकारी कार्यों का सम्पादन यहीं से शुरू होता है, इसलिए जैसे ही पद मिलता है, वे अपना कद स्वयं ाढ़ा लेते
हैं. तुरंत चुनाव के दौरान खर्च की गई राशि का कितना गुणा रूपया उगाया जा सकता है इसकी जुगत में लग जाते हैं. रोटेशन में पद कभी
महिला, अनुसूचित जाति, जनजाति या पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित होता है, तो अपने ही परिजन या पत्नी को पद दिलाने के लिए मंत्रियों
के दराार में हाजरी देने का दौर शुरू हो जाता है. आखिर क्यों ? क्योंकि एक सामान्य सा व्यक्ति जिसमें सादगी और ोचारगी झलकती
थी, वह चुनाव लड़ कर ाड़ा आदमी ानने का ख्वाा देखने लगता है क्या वे जनसेवा की भावना से पद की लालसा रखते हैं? ऐसे
अनेक सवाल क्रौधते हैं. कैसे एक व्यक्ति जो दो जून की रोटी के लिए रात-दिन एक कर रहा था, उसके घर दो और चार पहिया वाहन
कुछ ही माह में आ जाता है? है भय्या कुछ तो गोलमाल है. गांव का सहज सरल व्यक्ति समाज, परिवार और अनुशासन को अंगूठा
दिखा कर सफेद खादी का कुर्ता-पाजामा पहन कर गांव की गलियों की खाक छानता है और सपने देखता है आज पंच, कल सरपंच,
परसों पार्षद, नरसों सभापति, खरसों महापौर फिर विधायक और सांसद... मंत्री, घन-दौलत, एशो-आराम, सुख-सुविधा, संपन्नता. ये
ऐसा रोग है, जो एक ाार लग जाए तो मरते दम तक पीछा नहीं छोड़ता.
ाशशि परगनिहा