Wednesday, May 11, 2011

गांवों में सुधार के प्रयास पर लग रहा दाग

गांवों में सुधार के प्रयास पर लग रहा दाग
हमने अपने रोजमर्रा के जीवन में आचार-विचार में संस्थागत घर्म की वर्जना की है. युग और समय के साथ ताल मिलाकर प्रवहमान
लौकिक घर्म को ग्रहण किया है, लेकिन इसे जो तोड़ता है, उसे दण्ड देने का भी प्रावधान है. देश के हर उस छोटे-ाड़े गांव जहां के
निवासी आपसी भाईचारे के साथ सुख-दुख के साथी ान एक दूसरे की मदद के लिए आगे ाढ़ते हुए हंसते-ोलते, खिलखिलाते अपनी
उम्र काट देते हैं वहां भी कुछ ऐसे लोगों की टोली होती है, जो जोड़-तोड़ में लगे रहते हैं और एक हंसते-खेलते गांव की शांति में खलल
ड़ालते हैं. पहले ऐसे ही उपद्रवी तत्वों को दण्ड देने या गांव में अमन ानाये रखने ाुजुर्गों के मतों को सभी स्वीकार करते थे. ये गांव के
सयाने वृद्धजन ग्राम विकास की ओर भी अपने अनुसार कार्य करते थे, लेकिन ााद में यही कार्य पंच-सरपंच के जिम्मे आया, जिन्हें गांव
की प्रगति और खुशहाली का कार्य सौंपा गया.
पंचायतीराज प्रणाली-निचले स्तर पर स्वशासन के लिए पंचायतीराज प्रणाली शुरू की गई. लोगों की जरूरतों और आकांक्षाओं के
अनुरूप विकासात्मक कार्यक्रमों की विकेन्द्रित योजनाएं ानाने और इनको अमल में लाने के लिए पंचों-सरपंचों का होना प्रत्येक गांव में
आवश्यक है. सरकार ने इसीलिए गांवों के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए पंचायतीराज संस्थाओं के महत्व दिया. पंचायतीराज
अधिनियम में पंचायतों के लिए नियमित तौर पर हर पांच वर्ष पश्चात चुनाव कराने और निम्न जाति वर्ग को प्रतिनिधित्व देने अनुसूचित
जाति व जनजाति के लिए सीटों का आनुपातिक आरक्षण की व्यवस्था की गई. महिलाओं को जिनका काम सिर्फ घर की चारदीवारी में
कैद हो पत्नी, मां, ोची, ाहन का कर्तव्य निभाना था, उन्हें भी शिक्षा के साथ नेतृत्व करने के लिए कम से कम 33 प्रतिशत सीटों का
आरक्षण दिया गया. सरकार की यही मंशा है कि प्रभावी विकेंद्रीकरण गांव स्तर तक पहुंचे. ग्राम पंचायतें निचले स्तर पर जनतंत्र की
महत्वपूर्ण संस्थायें, जो प्रत्येक व्यक्ति तक जाए इसके लिए ही ग्राम पंचायतों का स्वरुप तैयार किया गया. पंच-सरपंच ही जिन्हें उस गांव
के युवा से लेकर ाुजुर्ग तक चुन कर लाते हैं, ग्रामीण विकास मंत्रालय के कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में प्रमुख भूमिका अदा करते हैं.
उद्देश्य-ग्रामीण विकास मंत्रालय के कार्यक्रमों का उद्देश्य गांवों में मूलभूत सुविधाओं में हर प्रकार का सुधार लाना और गरीाी हटाना
है. इन कार्यक्रमों को और प्रभावी ानाने व कार्य कुशलता ाढ़ाने समय-समय पर कार्यक्रमों में संशोधन भी किये जाते रहे हैं, लेकिन चुने
हुए प्रतिनिधि विकास के नाम पर कुछ कार्य करते हैं और इस मद पर प्राप्त राशि हड़पने की जुगत में लग जाते हैं. इसके पीछे जो प्रमुख
खामी नजर आती है वह यह है प्रत्येक ग्रामीण को अपने अधिकार और ग्रामीण विकास कार्यक्रमों की समुचित जानकारी नहीं होती.
विकास कार्यों का यथा समय पूरा नहीं होने या किसी कार्य को पूर्ण कराने में ईमानदारी का अभाव पंच-सरपंच को कई ाार अपने पद से
मुक्त होने या दण्ड का पात्र भी ानाता है. सरपंच के अकेले विकास कार्य की राशि को हजम करने से भी पंचों में सरपंच के प्रति क्रोध की
स्थिति ानती है, ता अविश्वास प्रस्ताव की नौात आती है.
धोखाधड़ी-अभी हाल ही में जनपद पंचायत पलारी के तहत आने वाले गांव हरिनभट्टा के पंचों ने महिला सरपंच शकुंतला ााई के
खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव 2 के विरुद्ध 10 मतों से पारित कर दिया. कुरुद विकास खण्ड के ग्राम पंचायत कातलोड़ में मनरेगा के
तहत तालाा गहरीकरण, पौघरोपण तथा स्टापडेम निमार्ण के लिए 42 लाख 91 हजार रूपये की मंजूरी मिली थी. कार्य पंचायत के
माध्यम से शुरू हुआ और अधूरा छोड़ दिया गया, जिसे पुरा होना ाता कर राशि आहरण कर लिया गया. इसके लिए फर्जी मस्टरलोल
ानाया गया और पंजीकृत मजदूरों के नाम रूपये निकाल कर धोखाधड़ी की गई. शिकायत हुई, फिर जांच तो 65 हजार रूपये की
गड़ाड़ी मिली. इस मामले में ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के सा इंजीनियर एस. के. ठाकुर, कातलोड़ पंचायत के रोजगार सहायक रूपेश्वर
साहू , सरपंच तेजन साहू, उपसरपंच हेमंत पटेल के जेल जाना पड़ा-खिलाफ मामला थाने में दर्ज किया गया है.
धोखाधड़ी, गान एवं अनियमितता के मामले में ग्राम पंचायत गुण्डरदेही के सचिव शत्रुहन साहू और सरपंच श्रीमती ईश्वरी ााई अड़वंशी
को अंतत: जेल जाना पड़ा. 23 कमारों के नाम इंदिरा आवास के लिए 5.75 लाख की राशि को सचिव ने ौंक से आहरण कर
धोखाधड़ी एवं जालसाजी की थी वहीं महिला सरपंच के साथ मिल कर पंचायत के अनेक निर्माण एवं सहायता राशि में हेराफेरी की गई.
गान-महासमुंद जिले के ग्राम पंचायत एमकोाहरा में भी मनरेगा योजना अन्तर्गत 6.5 लाख की राशि से पड़कीपाली में पुलिया एवं
सड़क निर्माण किया जाना था, जिसके लिए 34 हजार रूपये का चेक पोस्ट मास्टर को दिया गया, जिसमें से 20 हजार रूपये का गान
सरपंच कमल नारायण साहू और चरौद के पोस्ट मास्टर भेखलाल सिन्हा ने कर दिया. आ इन दोनों के खिलाफ जुर्म दर्ज किया गया है.
ईमानदारी-ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जो हमें सचेत करते हैं कि हम जिन्हें चुन कर लाये हैं उनकी अपने गांव और वहां के निवासियों के
निवासियों के प्रति कितनी ईमानदारी है. क्या हम भ्रष्टाचार, ोईमानी करने वाले व्यक्ति को उसके पद पर ाने रहने देंगे या उन्हें यह जता
देंगे कि भइये इसलिए चुन कर नहीं लाये हैं कि अपना पेट भरो.
अधिकारों व मानदेय भत्तों की मांग-आ जैसे ही नगरीय निकायों के जनप्रतिनिधियों के मानदेय और भत्तों में ाढ़ोत्तरी हुई तो
त्रिस्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था में अपनी सेवाएं दे रहे जनप्रतिनिधियों ने शासन से अपने अधिकारों व मानदेय भत्तों को लेकर मांग तेज
कर दी है. वे चिल्ला रहे हैं जनपद पंचायतों एवं जिला पंचायतों के माध्यम से जनकस्याणकारी एवं उल्लेखनीय कार्यों का संपादन होता
है. जनपद सदस्यों को करीा 10 ग्रामों में जनसमस्याओं को लेकर जनसम्पर्क करना पड़ता है और जिला पंचायत सदस्यों को 80 से 90
ग्रामों का भ्रमण वहीं वर्तमान पंचायतीराज अधिनियम में कियी प्रकार से विकास निधि कार्य के लिए स्वीकृत करने का अधिकार
प्रतिनिधियों को नहीं दिया गया है.
मांगे जायज है? -सरपंच संघ की जगह-जगह ौठकें हो रही है. ौठक में मुख्य रूप से मानदेय, पेंशन, निर्माण कार्यों की सीमा ाढ़ाने
और ाीमा सुविधा में वृद्धि की मांग जोर पकड़ रही है. यह भी मांग ानी हुई है कि सरपंचों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का प्रावधान
समाप्त किया जाए. सरपंच इस ाात पर भी जोर दे रहे हैं कि पंचायतीराज अधिनियम ानाते समय तीन पुरुष व दो महिला सरपंच मिलाकर
कुल 5 सदस्यों की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए. इसमें से कुछ मांगे जायज है तो कुछ मांगें गले नहीं उतर रही है. जैसे सरपंचों
के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव समाप्त करने की मांग. जा पद से हटा दिए जाने का भय ाना हुआ है फिर भी गड़ाड़ी की जारही है, तो
यह मांग पूरी हो जाएगी तो वे क्या करेंगे? इस महत्वपूर्ण पद में रौा, रूताा, मान-सम्मान और पैसा है हांलाकि यह सासे ठोटी इकाई है,
पर सरकार की जनकल्याणकारी कार्यों का सम्पादन यहीं से शुरू होता है, इसलिए जैसे ही पद मिलता है, वे अपना कद स्वयं ाढ़ा लेते
हैं. तुरंत चुनाव के दौरान खर्च की गई राशि का कितना गुणा रूपया उगाया जा सकता है इसकी जुगत में लग जाते हैं. रोटेशन में पद कभी
महिला, अनुसूचित जाति, जनजाति या पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित होता है, तो अपने ही परिजन या पत्नी को पद दिलाने के लिए मंत्रियों
के दराार में हाजरी देने का दौर शुरू हो जाता है. आखिर क्यों ? क्योंकि एक सामान्य सा व्यक्ति जिसमें सादगी और ोचारगी झलकती
थी, वह चुनाव लड़ कर ाड़ा आदमी ानने का ख्वाा देखने लगता है क्या वे जनसेवा की भावना से पद की लालसा रखते हैं? ऐसे
अनेक सवाल क्रौधते हैं. कैसे एक व्यक्ति जो दो जून की रोटी के लिए रात-दिन एक कर रहा था, उसके घर दो और चार पहिया वाहन
कुछ ही माह में आ जाता है? है भय्या कुछ तो गोलमाल है. गांव का सहज सरल व्यक्ति समाज, परिवार और अनुशासन को अंगूठा
दिखा कर सफेद खादी का कुर्ता-पाजामा पहन कर गांव की गलियों की खाक छानता है और सपने देखता है आज पंच, कल सरपंच,
परसों पार्षद, नरसों सभापति, खरसों महापौर फिर विधायक और सांसद... मंत्री, घन-दौलत, एशो-आराम, सुख-सुविधा, संपन्नता. ये
ऐसा रोग है, जो एक ाार लग जाए तो मरते दम तक पीछा नहीं छोड़ता.
ाशशि परगनिहा

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