Tuesday, March 19, 2013

सात वचन-सात फेरे

सात वचन-सात फेरे
एक महिला अचानक अपने हंसते-खेलते परिवार में एकांकी हो जाती है, तब उसे लगता है आयी विपदा से खुद को लड़ना होगा, पर उसे ढाढस कौन देगा? मेरे पड़ोस की घटना ले लें. रपववार की सुबह उसने मुझसे कहा-वक्ष में गठान होने का अहसास हो रहा है, क्या करूं? मैंने अपने परिचित स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिलने की सलाह दी. डाक्टर को फोन कर दिया. पड़ोसन तीन दिन बाद डाक्टर से मिलने गई (क्योंकि पति महोदय के पास वक्त नहीं था) परीक्षण से पता चला कैंसर है, जो चौथे स्टेज में पहुंच गया है. डाक्टर ने मुझे सारी बातें पड़ोसन के बताने से पूर्व दी जानकारी दे दी.
चार दिन बाद पड़ोसन डबडबाई आंखों से मुंबई के डाक्टर से या टाटा या नाना में दिखाने की बात कही. मैंने कहा तुरंत निकलें, यहां क्या कर रहे हैं. उनकी जेठानी भी साथ थी. वह अपनी जेठानी को साथ ले जाना चाह रही थी, पर जेठानी बार-बार इशारे कर रही थी, मुझे मुंबई नहीं जाना है. तत्काल मेल में डाक्टर को जानकारी भेजी, डाक्टर ने जवाब भेजा, आ जाइये. अब ट्रेन से जाये या प्लेन से इसे लेकर पति-पत्नी में बहस होने लगी. खैर रोती-गाती पड़ोसन प्लेन से मुंबई नानावटी में एडमिट हो गई.
बातचीत के दौरान मैंने जब पड़ोसन से पूछा कि क्या आपको अपने शरीर में आये परिवर्तन का आभास नहीं हुआ? उसने कहा स्थितियां ऐसी बनती रही कि डाक्टर को दिखा दूं, सोचती रही लेकिन वक्त नहीं निकाल पायी. कभी बच्चों की परीक्षा, कभी जेठानी के बच्चे का आपरेशन. इन्हीं सब में अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह हो गई लेकिन अब असहनीय दर्द होने लगा है. डाक्टर ने जब कैंसर बताया तो रातों की नींद और खाना-पीना सब छूट गया है. अब शरीर में पूरे समय दर्द रहता है.
जांच एवं कीमोथेरेपी करा पड़ोसन लौट आयी है. उनके साथ उनकी मम्मी-पापा भी यहां आये हैं. घर में दो बच्चे और पति हैं. 6 लोगों की उपस्थिति में वह खाना बनाने में असमर्थ है. 5000 रूपये में खाना बनाने वाली नौकरानी को रखा गया है. जेठानी जो जब-तब आ जाती थी उनका आना कम हो गया है. पति गुमसुम से हैं और नौकरी बजा रहे हैं. लाचार (शुगर की मरीज) मां दिन में तीन बार इंशुलिन के इंजेक्शन लगा बेटी का ध्यान रख रही है. पिता चाहते हैं यहीं रहें लेकिन उन्हें लौटना होगा अपने बेटे के पास.
क्या पति ने अपनी पत्नी की परेशानी उसके शरीर में आये परिवर्तन को रात में जब हमबिस्तर हुए, तब महसूस नहीं किया? क्या पत्नी की बीमारी उनके लिए कोई मायने नहीं रखता? क्या वे इस बीमारी के विषय में कभी आपस में बातचीत नहीं किये? क्यों पति ने डाक्टर को जब 2 से ढाई साल पहले इस बीमारी के चलते एक वक्ष पत्थर में तब्दील हो रहा था, दिखाने के लिए वक्त नहीं निकाला? क्या पत्नी सिर्फ भोग्या होती है? जो पति और बच्चों के खान-पान, घर की साफ-सफाई और उनकी जरूरतों को पूरा करने में अपने 24 घंटों को लगा दे? वह बीमार पड़ती है, तो पति मेडिकल स्टोर से दो गोलियां खरीद अपने कर्तव्य से मुक्त हो जाता है? आखिर क्यों वह पति भूल जाता है, जब अग्नि के सात फेरे लेते समय सात वचन देता है? क्या जन्म-जन्म का साथ विवाह के दौरान पढ़े मंत्रों और अग्नि कुण्ड के धुएं में उसी वक्त जलकर राख हो जाते है और उसे यह सार्टिफिकेट मिल जाता है कि तुम सिर्फ भोग्य की वस्तु हो, तुम्हारी भावनाओं, तुम्हारी बीमारी, तुम्हारे अधिकार कोई मायने नहीं रखते, तुम्हें तो मेरे बनाने नियमों के अनुसार चलना होगा. वह यही चाहता है तुम मेरी शारीरिक भूख मिटाओ तो बदले में मैं तुम्हें हर वो आधुनिक साजो-सामान दिलाउंगा, जिसमें तुम उलझी रहो.
शशि परगनिहा
19 मार्च 2013, मंगलवार
----------------------

No comments:

Post a Comment