Monday, August 16, 2010

shi

·स·
मनुष्य ·े जीवन में अने· उतार-चढ़ाव आते हैं और इ हीं सब
·े बीच वह सुख-दुख ·ो साथ-साथ जीते हुए इस संसार से
विदा ले लेता है. हर इंसान ·े पास इ हें जो उसने भोगा है, ·ो
बताने ·े लिए ल बी ·हानी होती है, जिसमें से वह ·ुछ सुख
·े पलों ·ो याद रखता है और अनगिनत दुखद क्ष ाों ·ो जो
संभवत; उस·े जीवन जीने ·ी शैली ·ो बदल देता है, हमेशा
याद रखता है. ऐसे ही ए· स्·ूली छा ाा जो अपने ·ैरियर ·ो
ले·र सपने संजो ·र ·ॉलेज ·ी सीढिय़ॉं चढऩे जा रही है, से
मेरी ·ाउ सलिंग ·े दौरान मुला·ात हो गई.
वह ·ाउ सलिंग ·े समय बहुत चह· रही थी. उसने अच्छे रैं·
प्राप्त ·िये थे. शास·ीय ·ॉलेज ·ी सीटें भर गयी थी, पर जिस
·ॉलेज में पढऩे ·ा रोमांच उसे था, उसी ·ॉलेज में उसे प्रवेश ·े
लिए सहमति मिल गयी. मेरी भतीजी ·ो भी ·ुछ ऐसा ही
रोमांच था, उसे भी उसी ·ॉलेज में दाखिले ·ी अनुमति मिल
गयी. मैं भी खुश थी ·ि ·ॉलेज में दोनों ·ा साथ रहेगा. ए·
दूसरे ·ा मोबाइल न बर लेने-देने ·े बाद ·ॉलेज में मिलने ·ा
वादा ·र दोनों अभी-अभी बनी सहेलियॉं विदा हो गई.
एडमिशन से पूर्व निर्धारित तिथि त· ·ॉलेज ·ी फीस जमा ·र
देनी थी. चूं·ि मैं नौ·रीपेशा हूं इसलिए ·ॉलेज ·ी फीस ·े
विषय में जान·ारी लेने में मुझे असुविधा हो रही थी. दरअसल
·ॉलेज शहर से 20-22 ·िलोमीटर ·ी दूरी पर स्थित है और
उस ·ॉलेज ·ा सिटी ऑफिस बंद मिल रहा था. वहां ·े फोन
·ो इसलिए ·ोई अटे ड नहीं ·र रहा था. उस लड़·ी ·ो ऐसे
में विस्तृत जान·ारी लेने ·े लिए मैंने मोबाइल ·िया.
- हलो - प्रतिमा
- हॉ.. बोल रही हूं.
- मैं.. पहचानी ऊॅं.. एश्वर्या ·ी बुआ बोल रही हूं.
- हॉ ऑटी पहचान गई.
- या हुआ रे- तूने फीस जमा ·र दी या?
- नहीं ऑटी और वह खामोश हो गई.
- हलो..हलो..
- ऑटी मेरे भाई से बात ·र लें.
- या हुआ मनोज, प्रतिमा अचान· खामोश यों हो गई, ·ोई
खास बात..
- हॉ ऑटी लगता है, वो उस ·ॉलेज में नहीं पढ़ पायेगी.
- ऐसा यों?
- इस साल से उस ·ॉलेज ·ी फीस बढ़ गयी है औेर ए· साथ
इतने रुपये देने से चाचाची मना ·र रहे हैं.
- तुम ·ॉलेज जा·र वहां बात ·र लो और दो ·िस्तों में फीस
जमा ·र दो, ·ोई परेशानी नहीं है.
- वो बात नहीं है ऑटी चार साल त· आखिर ऐसे ही इतने और
यदि फिर फीस ·ी र·म बढ़ गई, तो उससे यादा रुपये देने
होंगे.
यह बात सुन ·र मैं खामोश हो गई. मेरे दिमाग में भी उथल-
पुथल मचने लगा. ये छोटे-छोटे ब"ो ·ितनी दूर ·ी बात सोचने
लगे हैं, पर उन·ा ·ैरियर? उन·ी बातों से जाहिर हुआ ·ि वे
अपने चाचा पर निर्भर हैं यदि उ होंने हामी भरी तो ठी· नहीं तो
बीएससी ·े लिए सर·ारी ·ॉलेज में एडमिशन मिल ही जायेगा,
ले·िन या यह उस छोटी सी ब"ाी ·े साथ अ याय नहीं होगा?
मुझे अपनी भतीजी ·ो पढ़ाना ही है. मैंने रुपयों ·ा इंतजाम ·ैसे
·िया, यह अपनी भतीजी पर जाहिर नहीं होने दिया. बस यही
·हा- अच्छे से पढऩा बेटा ये रुपये यूं ही बर्बाद न हो.
ए· रात प्रतिमा ने मेरी भतीजी से लगभग रोते हुए फोन में ·हा-
मैं अब पढ़ नहीं पाऊंगी लगता है. और उसने अपनी बड़ी बहन
·ो फोन थमा दिया. वह भी यादा ·ुछ बोल नहीं पायी.
अपने आसपास प्रतिभावान ब"ाों ·ो इस तरह से आर्थि· तंगी
·े चलते पिछड़ते देखना अंदर त· उद्देलित ·र देता है और यह
भी सोचने बा य ·रता है यदि प्रतिभा ·ी जगह उस·ा भाई
होता, तो या उस·े चाचा ·ा र्नि ाय बदल नहीं गया होता? मुझे
पक्का य·ीन है प्रतिभा ·े चाचा ने अपनी आर्थि· स्थिति ·ा
खुलासा ·रने ·े साथ ये श द भी ·हे होंगे- हमारी स्थिति जैसी
है वैसा ही पढ़ायेंगे. शादी ·े बाद अपने सारे शौ·, इच्छाएं पूरी
·र लेना, पर या पढऩे ·ी वह उम्र और बिता हुआ समय
प्रतिभा ·ो मनचाहा ·ैरियर बनाने देगा? यह तो ए· उदाहर ा
है. न जाने और ·ितने ब"ो इस तरह से चाह ·र भी होशियार
होने ·े बावजूद अच्छी शिक्षा से वंचित रह जाते हैं.
0 शशि परगनिहा

2 comments:

  1. आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा , हिंदी ब्लॉग लेखन को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा आपका प्रयास सार्थक है. निश्चित रूप से आप हिंदी लेखन को नया आयाम देंगे.
    हिंदी ब्लॉग लेखको को संगठित करने व हिंदी को बढ़ावा देने के लिए "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" की stha आप हमारे ब्लॉग पर भी आयें. यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो "फालोवर" बनकर हमारा उत्साहवर्धन अवश्य करें. साथ ही अपने अमूल्य सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ, ताकि इस मंच को हम नयी दिशा दे सकें. धन्यवाद . हम आपकी प्रतीक्षा करेंगे ....
    भारतीय ब्लॉग लेखक मंच

    ReplyDelete
  2. आदरणीय हरीश जी
    आपने मेरे साईड ·ो देखा मुझे अपार प्रसन्नता हुई. भारतीय लेखन मंच ·े विषय में विस्तार से जान·ारी दें ता·ि मैं इससे जुड़ स·ू. आप·ा और मंच ·ा साथ रहा तो लेखन ·ार्य में जिस प्रोत्साहन ·ी आव्श्य·ता होती है वह मिलने से हो स·ता है लिखने में गति आये. जो लेखन में गलतियां होती हैं वह सुधर जाए.
    शशि परगनिहा
    ---------------

    ReplyDelete