Saturday, March 2, 2013

हमको नंगरा समझता है...

हमको नंगरा समझता है...
(राजधानी से कुछ  किलो मीटर के बाद कुछ इसी तरह के संवाद जब-तब आप सुन सकते हैं. मेरी बात में सच्चाई है. एक गरीब छत्तीसगढ़िया हिन्दी तब बोलने लगता है, जब कोई अच्छे कपड़े पहन उसके पास आ खड़ा होता है या जब वह शराब के नशे में होता है. बीपीएल चावल और हर गांव-शहर, गली-मोहल्ले में शराब की दुकान खुल जाने से वह और गरीब तथा अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड कर रहा है. मेरे लिखे वाक्य एक गरीब मजदूर के शब्द हैं, जो अश्लील लग लगते हैं, पर गांव-खेड़े में ऐसी बोली मां-बेटी-बहन-पत्नी सभी के सामने निर्लज्जता के साथ बोली जाती है. )
-ये टूरी ला भगा भोसड़ी के...ओधे लेवत हे.
-काय बोलत हंव...साले भीतरी में खुसरे हे. लेग ये ला.  ये तोर...कइसे भाखा नहीं फूटत हे. रेमटी टूरी के नाक ला पोछ. रेमट हर मुंह तक चुचवा गेहे. रो-रो के दिमाग ला खा डरिस.
- भूखाये हे बपरी हर. जा न थोकन चाउर ्बसा के लान दे.
- तोर डाक्टर किथे (डाक्टर मुख्यमंत्री के लिए) डाक्टर हव लोगन के नब्ज ल पहिचानथव. बोकर तो... जा अपन नारी (नब्ज) ला देखा के आबे. उसी तोला चाउर दिही.
-लेग न ओ टूरी ला. ये टूरी मुड़ी में मूतही का. साले घर में रीबे त इही कॉव-कॉव अऊ बाहिर रिबे त तोर चॉव-चॉव. जाथंव ठइंहा में उहे कल परही.
-तोला पीये के बहाना चाही. दू दिन होगे चुल्हा जरे नइये...पीये बर पइसा आ गे.
ये मादर...
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नशे में धूत घर लौटने पर-
-टूरी काय खात हे?
- दाई (दादी) घर ले नोनी ला रोवत देख बासी भेजे हे तेने ला खात हे.
- साले हमको पैसा दिखाता है. (पड़ोस में शराबी के माता-पिता का घर, जिन्हें उंची आवाज में सुनाते हुए) हमको नंगरा समझा है.
शशि परगनिहा
2 मार्च 2013, शनिवार
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1 comment:

  1. जहाँ-जहाँ शैतान नहीं पहुँच सकता था वहां उसने अपनी बेटी शराब को भेज दिया..

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