Friday, March 22, 2013

हिंदी भाषी का अंग्रेजी में हस्ताक्षर

 हिंदी भाषी का अंग्रेजी में हस्ताक्षर
हमारे देश में ऐसे कितने लोग हैं, जो हिन्दी में पढ़ते-लिखते और हिन्दी में बातें करते हैं. हिन्दी दिवस में बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं एवं हिन्दी को न केवल बोल-चाल में वरन शासकीय-अशासकीय काम-काज में शामिल करने के हिमायती हैं. वे विभिन्न संगोष्ठी-गोष्ठी, सभा-आमसभा में हिन्दी में लेक्चर देते हैं, पर जब किसी आवेदन-प्रतिवेदन में हस्ताक्षर करते हैं, तो वह अंग्रेजी में होता है. ऐसा क्यों?
मैंने ऐसे अनेक लोगों को देखा है, जो अंग्रेजी पढ़ तो सकते हैं, पर उसके मायने नहीं जानते या अंग्रेजी बोल रहे व्यक्ति के कथन को समझ सकते हैं लेकिन पढ़ नहीं सकते वे सभी अंग्रेजी में हस्ताक्षर करते हैं. मैं उन लोगों से भी परिचित हूं जिन्हें अंग्रेजी का अक्षर ज्ञान तो है लेकिन चंद लाइनें पढ़ते समय किसी बच्चे की तरह हिजगे कर पढ़ते और उसे समझने की असफल कोशिश करते हैं लेकिन हस्ताक्षर तो अंग्रेजी  में ही करना है.
मुझे साक्षरता अभियान योजना याद है. यह अभियान सरकारी स्तर पर व्यापक पैमाने पर चलाया गया. उन महिलाओं, वृध्दों के लिए यह योजना बनी, जिन्हें साक्षरता के लाभ को दर्शाते हुए डाक्यूमेंट्री फिल्में दिखायी जाती थी और उनके लिए विशेष क्लास लगायी जाती थी ताकि वे हिन्दी में पढ़ना-लिखना
सीख सकें. योजना का ध्येय अच्छा था किंतु जिन्हें यह कार्य सौंपा गया उनमें लगन का अभाव रहा. वे अपना टारगेट पूरा करने इन कक्षाओं में आने वाले लोगों को क-ख-ग सिखाते-सिखाते थक गये तो तय किया क्यों न इन्हें अपना नाम लिखना सिखाया जाये. प्रत्येक उपस्थित निरक्षकों को अपना-अपना नाम लिखना सिखाया गया और जैसे ही वे अपने नाम का एक-एक अक्षर जोड़-तोड़ कर लिखने लगे, तो अधिकारियों ने जाहिर कर दिया कि हमने फलां-फलां जगह इतने लोगों को साक्षर बना दिया.
शासकीय दस्तावेजों में निरक्षरों की संख्या घट गई, पर निरक्षर साक्षर नहीं बन पाये? वे आज भी उन दस्तावेजों में अपने हस्ताक्षर हिन्दी में कर रहे हैं, जिनके ऊपर हिन्दी में क्या लिखा है, उन्हें नहीं पता और कई बार अपनी निरक्षरता के चलते ठगे गये हैं.
मैं हिन्दी की हिमायती नहीं हूं और न ही अंग्रेजी हटाओ के पक्ष में. हमें समय के साथ चलना है, तो कम-से-कम इन दोनों भाषाओं पर कमांड जरूरी है लेकिन लोगों की मानसिकता की झलक इन हिन्दी भाषियों के अंग्रेजी में किये हस्ताक्षरों में देखी जा सकती है. वे अपनी अंग्रेजी को पुख्ता करने समय नहीं निकाल पाते किंतु अपने हस्ताक्षर को कैसे कलात्मक रुप दिया जाए इस पर घंटों प्रेक्टिस करते हैं. अनेक कागजों को रंगते हैं.
कही आपमें यह आदत तो नहीं है? मेरी बातों में सच्चाई ना हो तो अवश्य कहें, क्योंकि मैंने चंद लोगों को देख कर यह निर्णय नहीं लिया है. यदि आप हिन्दी के ज्ञान तक सीमित हैं, तो हिन्दी में हस्ताक्षर करने में कैसा संकोच?
शशि परगनिहा
22 मार्च 2013, शुक्रवार

1 comment:

  1. शशि जी, आपकी बात सौ फीसदी जायज है, इस पर लोगों को चिंतन करना चाहिए. मुझे इसकी प्रेरणा कैसे मिली, मैंनें बहुत पहले लिखा था, पाठक इसे भी अवश्‍य पढ़ें क्‍या आप भी हिन्‍दी में हस्‍ताक्षर करते हैं . प्रेरणा

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