Friday, April 27, 2012

पढ़बो आ से आमा अऊ छ से छेरी


पढ़बो आ से आमा अऊ छ से छेरी
जिस क्षेत्र में हम जिन्दगी तमाम करते हैं, उसके प्रति हमारी जिम्मेदारी भी बनती है. इसी तरह अपनी मातृभाषा के लिए सजगता आवश्यक है. भाषा, बोली  ही उस क्षेत्र के वाशिंदे होने की पहचान बताती है. जब कोई व्यक्ति संस्कृत को संस्क्रुत उच्चारण करता है, तो हम तत्काल पहचान जाते हैं कि यह मराठी भाषी है. ऐसा ही हम उस व्यक्ति के रहन-सहन और बातचीत के लहजे से उसकी प्रारंभिक पहचान बनाते हैं.
छत्तीसगढ़ी भाषा अत्यंत मीठी भाषा और बोली है. जब हम छत्तीसगढ़ी में बात करते हैं, तो अपनत्व का आभास होता है. यह अलग बात है कि हमें अपनी ही भाषा में सार्वजनिक स्थलों में बातचीत करने में संकोच होता है, जबकि अन्य प्रदेशों के वासी नि:संकोच अपनी भाषा-बोली का इस्तेमाल करते हैं और खुद पर गर्व महसूस करते हैं.
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ी भाषा को राज्य भाषा का दर्जा दिलाने और इस गुत्तुर बोली के विकास के लिए अनेक प्रयास किये गये पर अभी भी हम खाली हाथ हैं. हां एक प्रयास यह हो रहा है राज्य शैक्षणिक अनुसंधान परिषद (एससीईआरटी) प्रदेश के बच्चे स्थानीय बोलियों के आधार पर ककहरा सीखने सिलेबस तैयार करवा रही है. पढ़ाई को रूचिकर बनाने के लिए ककहरा में हल्बी, गोड़ी, मुरिया, गाड़िया, कुंडुक, सरगुजिया व छत्तीसगढ़ी जैसे 7 बोलियों के शब्दों को शामिल किया जा रहा है. पहली और दूसरी के बच्चों को खास ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल पहुंचने वाले बच्चों को हिन्दी आसानी से सम­ा आये इसे ध्यान में रखते हुए पुस्तकों के प्रकाशन की तैयारी है. इसके लेखन का काम शुरू हो चुका है. जैसे ही यह काम समाप्त होगा कुछ स्कूलों में परीक्षण बतौर इसे लागू कर दिया जाएगा और इसके अच्छे परिणाम आने पर प्रदेश में सन 2014 तक बच्चे स्थानीय बोली में ककहरा लिखने-बोलने लगेंगे.
छत्तीसगढ़ शांतिप्रिय प्रदेश है. यहां के वासी सीधे-सरल और भावुक होते हैं. दूसरे की पीड़ा देखी नहीं कि मदद के लिए तत्पर हो जाते हैं, जिसकी वजह से अनेक बार मुसीबतों का सामना करते हैं, पर अपने कर्तव्य से परे नहीं हटते तभी तो ककहरा में वे आ से आमा (आम) और छ से छेरी (बकरी) पढ़ेंगे ना कि उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के निजी और सरकारी स्कूलों में बच्चों की हिन्दी की किताबों में पढ़ाये जा रहे ब से बंदूक और च से चाकू पढ़ेंगे.
स्थानीय बोली या कहें कोई कविता बच्चों को पढ़ाई जाए तो बच्चे तत्काल रट लेते हैं और उसे गाते रहते हैं. मु­ो अभी भी बचपन में पढ़ी अनेक कोर्स की कविताएं याद है. ऐसे में मैं यह कह सकती हूं कि एससीईआरटी का इस दिशा में कार्य करना सराहनीय है, पर उन्हें यह खास ध्यान रखना होगा कि कोर्स में जो ककहरा तैयार कराया जाए उसमें हिंसात्मक शब्दों से परहेज रखा जाए क्योंकि इससे पहले जब भी बच्चों के पाठ्यपुस्तकों का प्रकाशन हुआ है, उसमें इतिहास और भूगोल जैसे विषयों में अनेक त्रुटि और भ्रामक जानकारियां दी गई थी, जिसे विरोध के बाद बदला गया, लेकिन बच्चों के दिमाग में एक बार कोई बात बैठ जाए, तो उसे हटाने लाखों जतन करने पड़ते हैं.
शशि परगनिहा,
27 अप्रैल 2012, शुक्रवार

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