Monday, March 25, 2013

अभियान लाभकारी या .....

अभियान लाभकारी या ..........
साहित्यकार, समाजसेवी व छत्तीसगढ़ अस्मिता अभियान के प्रांतीय संयोजक नंद किशोर शुक्ल अपनी सायकिल को दुल्हन की तरह सजाने के बाद हमारे प्रेस आये और चाहते थे कि उस दुल्हन को हम निहार लें, ताकि उनका अभियान (छत्तीसगढ़ी में शिक्षा की व्यवस्था) शुरू हो. दूसरे दिन से वे बुजुर्ग दुल्हन की सवारी कर आसपास के गांव में जाते रहे और महिलाएं उनकी आरती उतार कर सम्मान करती रही. वे कहते हैं कि छत्तीसगढ़ी भाषा जनभाषा है. करोड़ों छत्तीसगढ़ियों की मातृभाषा है इसलिए छत्तीसगढ़ी में शिक्षा देने की व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए. ध्येय अच्छा है या बुरा इसके परिणाम में मैं नहीं जाना चाहती किंतु एक उदाहरण जरूर देना चाहूंगी.
मेरे पड़ोसी के बुजुर्ग माता-पिता इन दिनों गुजरात से यहां आये हुए हैं. मेरा और उनका आमना-सामना हुआ, तो मैंने जैसे ही नजरें मिली नमस्कार करना चाहा लेकिन बा (बुजुर्ग मां के लिए संबोधन) ने मुझसे पहले अपने हाथ जोड़ कर नमस्ते कह दिया. अब बातें करनी ही थी. पूछा कब आये? वे मौन रहीं. तभी मेरी पड़ोसन अपने किचन से बाहर निकली और बताया बा को हिन्दी समझ आ जाती है लेकिन बोल नहीं पाती.
गुजरात का इतना विकास हुआ है (जैसा हमें इन दिनों दिखाया-पढ़ाया जाता है) से मैं सोचने मजबूर हो गई कि क्या यही विकास है? क्या इसीलिए नरेन्द्र मोदी जब जनसभा को संबोधित करते हैं, तब अपने राज्य की जनता की मानसिकता को ध्यान में रख गुजराती में भाषण देते हैं और जब जिस पद के लिए इन दिनों उनकी लालसा बनी हुई है, तब हिन्दी में संबोधन करते हैं? मतलब राज्य की जनता को खुश रखना है तो शिक्षा पाठ्यक्रम में उस प्रदेश की भाषा  को रखें. ठीक यही कार्य शुक्लजी करने निकल पड़े हैं. क्या वर्तमान परिवेश में हम अपने बच्चों को छत्तीसगढ़ी में पढ़ने की अनिवार्यता का समर्थन करें? क्या भविष्य में हम अपने बच्चों को बा की तरह सीमित दायरे में कैद कर दें ताकि वे अन्य प्रदेश में उच्च शिक्षा या नौकरी के लिए जायें तो अपने साथियों से बात कर ही ना पायें? और पिछड़ जायें. कई बार हमारे बड़े-बुजुर्ग अनजाने में ही अपने बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करने निकल पड़ते हैं और आश्चर्य इस बात का कि उन्हें समझाता कोई नहीं वरन सम्मानीत किया जाता है.
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1 comment:

  1. लेकिन ऐसे अभिभावकों के लिए क्‍या कहें जो स्‍कूल में छत्‍तीसगढ़ी की वकालत करें और घर में अपने बच्‍चों से हिन्‍दी बोलें. छत्‍तीसगढ़ी के ऐसे कई (आशय नन्‍दकिशोर जी से नहीं) झंडाबरदार है, जो बस माइक पाते ही धाराप्रवाह छत्‍तीसगढ़ी बोलते हैं.

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