Wednesday, February 20, 2013

उनके आंसू हमारी पीड़ा

उनके आंसू हमारी पीड़ा
27 मई 2012 की शाम भाठागांव स्थित वाटर वर्ल्ड के पास खेत में बैठकर यातायात महिला आरक्षक अपने पुरूष मित्र प्रथम बटालियन के जवान के साथ बातचीत में लगी थी तभी कुछ युवकों ने महिला सिपाही को पास के खेत में ले जाकर अनाचार किया. पुलिस ने पीड़िता का मेडिकल कराने के बाद गैंगरेप का अपराध कायम किया. मामला कोर्ट में चला और 7 महिने पूर्व के इस केस का रिजल्ट यह निकला कि आरोपी बा-इजजित बरी हो गये. पुलिस ही आरोप साबित करने में असफल रही.
इस मामले का रिजल्ट इसलिए दिलो-दिमाग में हलचल मचा रहा है क्योंकि पुलिस ने स्वयं अपने साथी को न्याय दिलाने पुख्ता धारायें नहीं लगा पायी और ना ही केस को इतना मजबूत बना पायी कि इस तरह के अपराध करने वाले साक्ष्य के अभाव में आसानी से छूट गये.
इसी तरह का एक मामला बस्तर के झलियामारी में स्थित कन्या छात्रावास में नाबालिग बच्चियों के साथ हुआ. मामले ने तुल पकड़ा और इस पर राजनीति शुरू हो गई. चूंकि इन दिनों छत्तीसगढ़ विधानसभा का सत्र चल रहा है, तो यह मामला उछलना ही था. जैसे ही इस पर बहस चली उच्च शिक्षा मंत्री भरे सदन में रो पड़े. मुख्यमंत्री ने खुलासा किया कि इन हच्चियों से मुलाकात करने और इनकी पढ़ाई की व्यवस्था का पूरा इंतजाम करने का वायदा पहले ही इनके माता-पिता से कर रखी है.
सवाल यह कि क्या सचमुच इन हादसों से गंभीर रूप से आहत हुई बच्चियों और उस महिला आरक्षक की पीड़ा को कोई समझ रहा है? क्या हम सिर्फ चौक-चौराहे में कैंडल जलाते रहेंगे? क्या हम भिन्न-भिन्न तरीकों से अपना विरोध प्रदर्शन करते रहेंगे पर व्यवस्था वही की वही रहेगी?
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