Wednesday, February 27, 2013

अधेड़ पुरूष की चाहत

अधेड़ पुरूष की चाहत
जिन्दगी कितनी अजीब है और लोगों की जरूरतें भी. मेरा अभी कुछ दिनों पहले एक सेवानिवृत्त अधिकारी से पाला पड़ा, जो नौकरी करते तक अविवाहित रहे. उम्र अनुसार परिजनों-मित्रों ने उन्हें शादी कर लेने की सलाह दी पर वे इस वर्ष नहीं यही रट लगाते रहे अ‍ैर वह दिन आया जब लोगों ने उनसे विवाह कर लेने की समझाइश देनी बंद कर दी.
नौकरी में ऐसे रमे कि आसपास से बेखबर हो गये. नियमित दिनचर्या रिटायर होते ही बदल गयी. अब समय ही समय ... और कोई काम नहीं. परिवार से दूर रहने के कारण वो अत्मीयता नहीं रही कि अब उनसे जुड़ने की कोशिश करें तो उनके अपने उन्हें सहजता से लें.
बातों-बातों में उन्होंने शादी की ख्वाहिश जाहिर कर दी. किसी लड़की के बारे में पूछने लगे. मैंने कहा अब आप अपने परिवार की किसी कन्या को अभिभावक की तरह पालें, उसकी अच्छी परवरिश करें ताकि वह शिक्षित हो अपने पैरों पर खड़ी हो सके. मेरी बात को सिरे से काटते हुए उन्होंने कहा-मेरी लाखों-करोड़ों की सम्पति का क्या होगा? मुझे वारिश चाहिए?
बात लंबी चली पर सार यही रहा कि उन्हें इस उम्र में ऐसी सुघड़ महिला-युवती चाहिए, जो उनके खान-पान, समय पर दवाई अ‍ैर जरूरत पड़ी तो हाथ-पैर दबा सके अ‍ैर एक पुत्र वारिश भी तो चाहिए. कुल जमा..एक नौकरानी, जो समाज की नजरों में पत्नी कहलाए अ‍ैर उनकी यौन इच्छाओं की पूर्ति कर सके.
इन दिनों में खुशवंत सिंह का उपन्यास औरतें पढ़ रही हूं, जिसमें उपन्यासकार ने मुख्य पात्र मोहन की अपनी पत्नी से तलाक के बाद की स्थिति खास जो सेक्स की तलाश में भटक रहा है, का यथार्थ चित्रण किया है. उन्होंने स्पष्ट लकीर खींची है कि आदमी जब वृध्द होने लगता है, उसकी कामेच्छा शरीर-मध्य से उठकर दिमाग की ओर बढ़ने लगता है. अपनी जवानी में वह जो करना चाहता था अ‍ैर अवसर के अभाव, घबराहट या दूसरों की स्वीकृति न मिलने के कारण नहीं कर सका, उसे वह अपने कल्पनालोक में करने लगता है.
इस उपन्यास का जिक्र इसलिए  कि औरतें पढ़ते-पढ़ते मुझे उस रिटायर अधिकारी की याद ताजा हो गयी. कितना आसार है एक पुरूष के लिए जिसकी चाह होती है एक ऐसी स्त्री की, जो हमेशा उसकी हमराह हो, उसके साथ हम-बिस्तर भी हो सके, पर उसकी स्वतंत्रता में कभी दखल ना दे. वह घर में नौकरानी की तरह काम करती रहे...अपनी जरूरतें न बताये...खामोश उसकी आज्ञा का पालन करे और उसकी सेक्स की पूर्ति के लिए हर वक्त तैयार रहे.
शशि परगनिहा
27 फरवरी 2013, बुधवार
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1 comment:

  1. हम्म बात तो गंभीर भी है और विचारणीय भी

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