Tuesday, February 19, 2013

कुंभ में बिछुड़े भीड़ में मिले

कुंभ में बिछुड़े भीड़ में मिले
राम अब बड़ा हो गया है. पढ़ाई-लिखाई में कमजोर है. नौकरी नहीं मिल रही है. सड़कों में आवारा घुमता है. आवारा कुत्तों को प्यार करता है और लोगों को उल्लू बना चार पैसे कमा लेता है. उसके पास खुद की खोली है, जिसमें वह तब लौटता है, जब सभी घरों की लाइईटें बंद हो जाती है. जिस अवस्था में रहता है वैसे ही सीधे बिस्तर में पड़ जाता है और जब सुबह उसकी नींद टूटती है, तब तक पूरी बस्ती में सिफ4 छोटे बच्चे और बुजुर्ग अपनी-अपनी खोली के सामने गलीनुमा सड़क में खेलते या सिर पर हाथ रख टकटकी लगाये न जाने क्या देखते-सोचते रहते हैं
राम नित्य कर्म से फारिग हो फिर निकल पड़ता है, चार पैसों के जुगाड में. यही उसकी दिनचर्या है. ऐसे ही एक दिन बड़ी सी कार के सामने वह टकरा जाता है. कार का ड्राइवर उसे उठाता है, तो राम को देख दंग रह जाता है. वह सोचने लगता है कार में बैठे साहब और इस फटे-हाल युवक की शक्ल में कितनी समानता है. अब ड्राइवर मौन है और राम पैसे एठने की जुगत में लग जाता है. उसे खरोच तक नहीं आयी है, पर उसे पता है कार के अंदर सूट-बूट पहना टाईधारी युवक पुलिस केस में फसना नहीं चाहता और अपने पर्स से जितने नोट निकालते बनेगा उसे पकड़ा देगा.
ड्राइवर अब भी खामोश है. राम ने मौका देख कार का पिछला दरवाजा खोला. अंदर बैठा युवक मोबाइल में व्यस्त है. उसे नहीं पता बाहर क्या हो रहा है.
राम की नजर जैसे ही पिछली सीट पर बैठे युवक की ओर जाती है, वह भी सन्न रह जाता है. अरे साला इसमें और मुझमें बड़ी समानता है. यह साला गोरा-चिट्टा है. बेशकीमती कपड़ों और आधुनिक सुख-सुविधाओं से लैस है. विदेशी परफ्यूम की मीठी-मीठी गंध आ रही है और मैं एक ही कपड़े को हफ्ते-हफ्ते पहन रहा हूं. कपड़े में पसीने की तेज बदबू हैं. पैर में फटी चप्पल है. हाथ सख्त है. पर हूं तो हू-ब-हू इसी की तरह.
कार में बैठा युवक भी चौक जाता है. बिना कुछ कहे अपने पर्स से 1000 के 5 नोट निकालता है और अपने विजिटिंग कार्ड के साथ उसे थमा ड्राइवर को इशारा कर आगे बढ़ जाता है.
राम विजिटिंग कार्ड की अनदेखी कर 5000 के नोटों को ललचायी नजरों से देखता है. खुस है. महिने भर का खर्च निकल जाएगा. फिर सोचता है उस युवक की तरह न सही एक अच्छी शर्ट और पैंट तो खरीद सकता है. वह तुरंत पास के मॉल में जाता है और किसी बडेÞ बाप के बेटे की तरह जेब में रखे रूपयों की गर्मी से 3000 रूपयों में एक पैंट और शर्ट खरीद लेता है. बड़े होटल में छक कर खाना खाता है और बचे रूपयों से लेदर का शू खरीद अपनी खोली में पहुंचता है. वह खुश है लेकिन आज उसे नींद नहीं आ रही है. करवट बदलते रात कट जाती है. सुबह-सुबह उसे ख्याल आता है जेब में रखे विजिटिंग कार्ड की. मैली शर्ट की जेब को टटोलने पर कार्ड दिख जाता है. कार्ड में उस युवक का नाम एस. कुमार लिखा है. वह तय करता है आज बन-ठन कर एस. कुमार से मिला जाए.
गुनगुनाते हुए वह नहाता है. नये कपड़े पहन जब खुद को टूटे आइने में निहारता है, तो एस. कुमार का प्रतिबिंब झलकता है. लिखे पते पर वह पहुंचता है, पर यह क्या अनेक बाधाओं को पार करने के बाद लगभग एक घंटे की मशक्कत ने एस. कुमार के केबिन के पास ठहरने बाध्य कर देता है. सुबह से दोपहर हो जाती है. तीन बजे के लगभग एस. कुमार अपने केबिन से बाहर निकलता है, पास के फाइव स्टार होटल में लंच लेने.
तभी दोनों की नजरें टकराती है. एस. कुमार इशारे से राम को साथ चलने कहता है. राम एस. कुमार के पीछे-पीछे आफिस से बाहर आता है. वही ड्राइवर उन्हें होटल तक छोड़ता है.
एस. कुमार और राम साथ लंच कर रहे हैं. राम खाना देख टूट पड़ता है. एस. कुमार सुप के बाद एक चपाती खा बिल देने की तैयारी में है. दोनों के बीच कोई संवाद नहीं है. भरपेट खाने के बाद एस. कुमार राम को वही छोड़ आगे अपने आफिस जाने से पहले अपने घर का पता देता है और कहता है रात में घर पर साथ डिनर करेंगे, जरूर पहुंच जाना.
राम को और क्या चाहिए. वह पास के गार्डन में समय काटता है. जैसे ही 7 बजा वह एस. कुमार के बताये पते पर पहुंचने बस स्टॉप की ओर चल पड़ता है. एक घंटे में वह एक सुसज्जित बंगले के बाहर खड़ा है.
गेट खोलने वह जैसे ही हाथ बढ़ाता है गाड उसे रोक देता है. नाम... मिलने का कारण पूछता है. गाड कहतता है अभी साहब घर नहीं पहुंचे हैं. 1 घंटे बाद आना. राम परेशान हो जाता है. कहता है अंदर बैठने दो बाहर एक घंटे कैसे काटूंगा. गाड और राम में तीथी बहस होने लगती है, तभी बंगले की बालकनी से एस. कुमार की मां की नजर इस शोर की ओर जाता है और वह इंटरकाम से वस्तुस्थिति का पता लगाती है. फिर आदेश देती है, उस युवक को अंदर आने दें.
राम को अंदर जाने दिया जाता है. राम का मुंह बंगले की साज-सज्जा देख  खुला का खुला रह जाता है, तभी एस. कुमार की मां बैठक कक्ष में पहुंचती है. राम में एस. कुमार की झलक दिखती है. उसे यह तो पता था कि आज कोई मेहमान हमारे साथ डिनर में आमंत्रित है, पर यह नहीं मालूम था कि यह अंजान युवक अपना जाना-पहचाना सा होगा.
वह सदमे में है. पास के सोफे में वह धम से बैठ जाती है. पुरानी यादें तरोताजा हो जाती है. याद आता है आज से 20 साल   पहले का द्श्य, जब वह अपने दोनों बच्चों, सास-श्वसुर और पति के साथकुंभ मेले में गई थी. पति ने अपने माता-पिता की इच्छा को पुरा करने कुंभ स्नान का वायदा कर यहां लाया था और इसी कुंभ मेले में पुण्य स्नान करने के दौरान ऐसी भगदड़ मची कि कब एक हाथ से पति का हाथ छुटा और दूसरे हाथ में थामें श्याम साथ रह गया.
अपनों की तलाशने अंजान जगह वह रोती-बिलखती रही. पुलिस ने बाद में मृतकों की सूची में पति, सास-श्वसुर का नाम दिखाया. राम के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली और वह दुखी मन से श्याम को अपने सीने से लगा घर लौट गई.
अब उलका एक ही काम था. श्याम को इस काबिल बना देना कि कुल का नाम रोशन कर सके. मेहनत रंग लायी और श्याम ने मां की इच्छाओं को पूरा कर दिखाया. इस युवक में मां को अपने बिछड़े बेटे राम की झलक नजर आयी. वह कुछ कह पाती इससे पहले ही एस. कुमार की ड्राइंग रूम में एट्री हुई और वह खामोश मां की भावनाओं को समझ गया.
एस. कुमार ने राम से सिर्फ यही कहा. भाई मैं तुम्हारा छोटा भाई श्याम और यह हमारी मां, जो बरसों से तुम्हें तलाशती रही.
शशि परगनिहा
19 फरवरी 2013, मंगलवार
------------

1 comment:

  1. बहुत सुंदर कहानी.सच भी हो सकता है. मार्मिक भी लगी.

    ReplyDelete